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________________ अपनापन नहीं आया। यही कारण है कि उसकी उपेक्षा हो रही है। देह की संभाल में हम चौबीसों घंटे समर्पित कर देते हैं, पर आत्मा के लिये हमारे पास समय नहीं है। इसका एकमात्र कारण शरीर में अपनापन और आत्मा में परायापन ही है। यदि हमें सम्यग्दर्शन प्राप्त करना है तो स्व-पर का भेदज्ञान कर देह के प्रति एकत्व को तोड़ना होगा और आत्मा में एकत्व को स्थापित करना होगा। निज आत्मा में अपनापन ही सम्यग्दर्शन है और आत्मा से भिन्न देहादि परपदार्थों में अपनापन ही मिथ्यादर्शन है । अपनेपन की महिमा अद्भुत है । एक सेठ का दो-ढाई वर्ष का इकलौता बेटा खो गया । बहुत कोशिश की, पर मिला नहीं। वह भीख माँगकर पेट भरने लगा। जब वह 8 वर्ष का हो गया, तो एक हलवाई की दुकान पर बर्तन साफ करने का काम करने लगा । सेठ का चौका बर्तन करने वाला नौकर नौकरी छोड़कर चला गया । अतः सेठ ने उसी हलवाई से नौकर की व्यवस्था करने को कहा और वह सात-आठ साल का बालक अपने ही घर में नौकर बनकर आ गया । अब माँ बेटे के सामने थी और बेटा माँ के सामने, पर माँ बेटे के वियोग में दुःखी थी और बेटा माँ - बाप के वियोग में। वह सेठानी बच्चे से दिन-रात काम लेती और उसे समय पर भोजन भी नहीं देती । एक दिन एक पड़ोसिन ने संकोच के साथ कहा - "अम्माजी ! यह नौकर शक्ल से और अकल से सब बातों में अपने पप्पू - जैसा ही लगता है । वैसा ही गोरा-भूरा, वैसे ही घुंघराले बाल । सबकुछ वैसा ही है, कुछ भी तो अन्तर नहीं और यदि आज वह होता तो होता भी इतना ही बड़ा ।" अब अपने पप्पू • मिलने की आशा तो है नहीं। आप उसके वियोग में कब तक दुःखी होती रहोगी? मेरी बात मानो तो आप इसे गोद क्यों नहीं ले लेती? उसने इतना ही कहा था कि सेठानी तमतमा उठी - "क्या बकती हो न मालूम किस कुजाति का होगा यह ? " सेठानी के इस व्यवहार का एकमात्र कारण बेटे में अपनेपन का अभाव ही तो है। वैसे तो वह बेटा उसी का है, पर उसमें अपनापन न होने से उसके प्रति U 304 S
SR No.009993
Book TitleRatnatraya Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSurendra Varni
PublisherSurendra Varni
Publication Year
Total Pages800
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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