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________________ ज्यादा क्या कहें? अगर आप आत्मतोष चाहते हैं तो काम की सेवा कीजिये। राग-द्वेष का अपलाप संयम को सहन नहीं हुआ और दोनों को एक-एक चाँटा मारकर दरवाजे से बाहर कर दिया। संयम से अपमानित होने पर राग-द्वेष बड़े क्रुद्ध हुये और वे वहाँ से सीधे कामदेव के पास पहुँच गये। उन्होंने जाकर कामदेव के कान भरते हुये कहा कि जिनराज अत्यन्त अगम्य, अलक्ष्य और महान बलवान हैं। वे आपको कुछ नहीं समझते हैं। उन्होंने हमारा अपमान करके भगा दिया है। राग-द्वेष की बात सुनकर कामदेव इस प्रकार से भड़क उठा जैसे अग्नि पर घी डालने से वह भड़क उठती है। कामदेव ने युद्ध की भेरी बजाने का आदेश दे दिया। आदेश सुनते ही उसकी सेना के अठारह दोष, तीन गारव, सात व्यसन, पाँच इन्द्रिय विषय, तीन शल्य, सत्तावन आस्रव तथा आठों कर्म नरेश अपनी-अपनी फौजों को लेकर रोष भरे आ पहुँचे। तीन मूढ़ता, षट अनायतन भी युद्ध की तैयारी करके आ डटे। इस प्रकार जिनराज से युद्ध करने मकरध्वज अपनी सेना लेकर चला। और इधर जिनराज ने संवेग को बुलाकर कहा-जाओ, जल्दी-जल्दी अपनी सेना तैयार करो। __जिनराज की आज्ञा पाते ही दस धर्म, पाँच महाव्रत, पाँच समिति, तीन गुप्ति, बारह अनुप्रेक्षा, बारह तप, सम्यक्त्व के आठ अंग, सम्यग्ज्ञान, अट्ठाइस मूलगुण, धर्म्यध्यान, शुक्लध्यान, बाइस परीषहजय, क्षायिक दर्शन, क्षायिक ज्ञान, क्षायिक सुख, क्षायिक वीर्य आदि चतुरंग सेना रणभूमि में आ गई। दोनों सेनाओं में युद्ध हुआ। मकरध्वज की सेना पराजित हुई। मोह को बन्दी बनाया गया। मोह के बन्दी बनते ही शेष शत्रुसेना हथियार डालकर भाग गई। जिनराज की विजयपताका फहराते ही सिद्धसेन महाराज की पुत्री मुक्तिश्री ने जिनराज के गले में वरमाला डाल दी। वरमाला डालते ही देवांगनायें मंगल गान गाने लगी और इस निर्वाण महोत्सव को मनाने चतुर्निकाय के देव आदि आ गये। जो भी रत्नत्रय को धारण कर तप के माध्यम से आठों कर्मों को नष्ट कर देते हैं, उन्हें मोक्ष की प्राप्ति होती है। 0 301_n
SR No.009993
Book TitleRatnatraya Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSurendra Varni
PublisherSurendra Varni
Publication Year
Total Pages800
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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