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________________ मोह ने कहा कि युद्ध के पहले हमें वहाँ दूत पहुँचाना चाहिये। नीति कहती है पहले दूत भेजना चाहिये और बाद में युद्ध करना चाहिये। दूत से ही विरोधी सेना की सबलता और निर्बलता का पता चलता है। राग और द्वेष को दूतत्त्व का भार सौंपा गया। ये ही अनन्त दुःख परम्परा के प्रथम अंकुर हैं। ये देहधारियों में अनायास ही उत्पन्न हो जाते हैं। ये महान वीर हैं और ज्ञान साम्राज्य के समूल विध्वंसक हैं। ये जीव को भुलाते हैं, भ्रमाते हैं, डराते हैं, रुलाते हैं, शंकित करते हैं, दुःख देते हैं। राग और द्वेष को जिनराज के स्थान पर पहुँचने के लिये अत्यन्त विषम मार्ग से आना पड़ा। अपने पारिवारिक बिछुड़े हुये मित्र संज्वलन के पास पहुँचकर कहा-मित्र! तुम हमें किसी भी प्रकार से जिनराज के पास पहुँचा दो। संज्वलन कषाय ने पूछा कि तुम लोग जिनराज के पास किस काम से आये हो? हम लोग जिनराज से भेंट करना चाहते हैं। हमें कामदेव ने भेजा है। संज्वलन कषाय ने कहा कि जिनराज कामदेव का नाम सुनना भी पसन्द नहीं करते। तुम वहाँ मत जाओ। उनके सामने जाने से तुम्हारा अहित हो जायेगा। __ किसी भी प्रकार से राग-द्वेष जिनराज के समवसरण में पहुँच गये। वहाँ जाकर राग-द्वेष ने देखा कि जिनराज कमलासन पर विराजमान हैं। उनके शिर पर तीन छत्र लटक रहे हैं, चौंसठ चंवर ढुर रहे हैं। भामण्डल की प्रभापुंज से दमक रहे हैं। अनन्त चतुष्टय से सुशोभित हैं और कल्याण अतिशयों से सुंदर हैं। जिनराज का वैभव देखकर राग-द्वेष चकित रह गये। उन्होंने जिनराज से कहा-स्वामिन्! हमारे स्वामी कामदेव ने आपके लिये आदेश पहुँचाया है कि आपके पास जो तीन अमूल्य रत्न हैं, उन्हें आप हमारे सम्राट को दे दीजिये। दूसरी बात, सिद्धकन्या के साथ आप जो विवाह कर रहे हैं, उसे तोड़ दीजिये। यदि आप सुखी रहना चाहते हैं तो काम की सेवा करें और सुखी रहें। संसार के सभी प्राणी उसकी सेवा में रत हैं। स्वर्ग के देव और इन्द्र भी उसकी पूजा करते हैं। ब्रह्मा, विष्णु, महेश और अन्य राजागण उनके सम्मान में खड़े रहते हैं। आप भी उनके साथ मित्रता कायम रख लें अन्यथा आपका अहित होगा। हम आपसे 0 300_n
SR No.009993
Book TitleRatnatraya Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSurendra Varni
PublisherSurendra Varni
Publication Year
Total Pages800
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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