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________________ समझना। इस फल का नाम अमर है। इसके खाने वाले की मृत्यु नहीं होती। ब्राह्मण उस फल को देखकर और लेकर घर आया। स्त्री से सारा सोच-विचार कर ब्राह्मण उस फल को लेकर राजा के पास आ पहुँचा। महाराज ने उस ब्राह्मण को अपने पास बुला लिया और कहा-हे द्विज! आपको क्या कष्ट है? ब्राह्मण ने उस अमर फल की सारी कहानी राजा को कह सुनाई और वह फल राजा के हाथ पर रख दिया। महाराज ने खुश होकर बहुत धन उस ब्राह्मणक को दिया। ब्राह्मण के विदा होते ही भर्तृहरि मन-ही-मन सोचने लगा कि यह फल बहुत अच्छा है, लेकिन समझ में नहीं आता कि ये फल खुद खाऊँ या पिंगला को खिलाऊँ? विचार कर वह फल पिंगला को दे दिया। अब पिंगला के मन में यह विचार आया कि इसका क्या करना है? उसने वह फल अपने प्रेमी दरोगा को दे दिया। मन-ही-मन दरोगा भी सोचने गला कि इस फल को मैं खाऊँ तो क्या फायदा? मैं इसे अपनी प्रेमिका वेश्या को दे आऊँ। दरोगा साहब को आया देखकर वेश्या ने उन्हें अपने पास बैठाया और आने का कारण पूछा। दरोगा ने अमर फल की सारी कहानी बता दी और वह फल वेश्या को दे दिया। अब वेश्या सोचने लगी कि मैंने बहुत पाप किये हैं। अमर फल को खाने से ज्यादा जीना पड़ेगा, इतना ही दुःख भुगतना पड़ेगा। इसलिए यह फल मेरे खाने योग्य नहीं है, यह फल महाराज भर्तृहरि को देना चाहिए। वह राजा अमर रहेगा तो प्रजा सदासुखी रहेगी। और उसने वह फल लाकर राजा को दे दिया। फल देखते ही राजा के होश उड़ गए, वे सारी स्थिति समझ गए। उन्हें पिंगला के विश्वास पर बड़ी ग्लानि हुई, उन्हें जबरदस्त सदमा लगा। अब उनकी आँखें खुली तो पता चला कि स्त्रियों की प्रीति में सार नहीं होता। उन्हें संसार से विरक्ति हो गई और समझ लिया कि संसार में कोई किसी का नहीं होता। वह राजा संसार के विषयभोगों से एकदम विरक्त हो गया। यह सब मिथ्यासंसार है। इसमें फँसकर मनुष्य अपना कीमती जीवन गँवा देता है। वह बार-बार कामदेव को धिक्कारते हैं। उन्होंने सारा राजपाट त्याग दिया और धनदौलत वैभव को छोड़कर वन को चले गए। चलते समय मन्त्री से कहा कि मैंने विक्रम के साथ बड़ा अन्याय किया है, मुझे उस समय कुछ भी ज्ञान न था, 0 283_n
SR No.009993
Book TitleRatnatraya Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSurendra Varni
PublisherSurendra Varni
Publication Year
Total Pages800
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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