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________________ करायेगी उसे ही महाराज करेंगे। अतः बहुत सोच-विचार करने पर सेठ रानी की बात पर राजी हो गए। दूसरे दिन दरबार लगा, दरबार में एक व्यक्ति दुहाई-दुहाई का शोर मचाता हुआ आया। महाराज ने उसे सामने बुला कर बात पूछी। उसने भरी सभा में कहना शुरू कर दिया-'महाराज! आपके छोटे भाई बड़े ही दुराचारी, अत्याचारी, अनाचारी, व्यभिचारी हो गये हैं। सेठ ने अभी इतना ही कहा था कि महाराज के मन में पिंगला की बताई हुई बात घूम गई, उन्हें मन-ही-मन पिंगला का घोर विश्वास हो गया। आखिर सेठ ने वही सारी कहानी दोहरा दी जो पिंगला ने बताई थी। इतने में महाराज का चेहरा तमतमा उठा। विक्रम ने सेठ से कहा कि तुम बुढ़ापे में झूठ बोल कर क्यों पाप सिर चढ़ाते हो? मैं तो तुम्हारी पुत्रवधु को जानता तक नहीं कि वह भली है या बुरी? मेरे लिए वह माता के समान है। यदि मेरे ऊपर दोषारोपण करके अपना मतलब भी सिद्ध करोगे तो इससे क्या होगा? सांसारिक धन-दौलत भी आपके साथ नहीं जायेगी। ये शरीर और धन-दौलत भी तो अनित्य है। अतः सेठ जी! धर्म को न छोड़ो। आप किसी के डर से यह दोष मुझ पर लगा रहे हैं। जब जाँच करने पर भेद खुलेगा, तब आपकी क्या दशा होगी? विक्रम की बातें न सुनकर महाराज भर्तृहरि ने कहा- रे नीच, रे पापी! तू मेरे सामने बातें बना कर सच्चा बनने की कोशिश न कर। अब तेरी मक्कारी, धोखेबाजी नहीं चलेगी। अगर अपने प्राणों की रक्षा चाहता है तो यहाँ से इसी समय भाग जा। विक्रम भाई की बात सुनकर बोला कि मैं तो अभी चला जाता हूँ, पर आपने यह बात जो बिना जाँच कराये एक तरफ ही फैसला दिया है, यह सरासर गलत है। एक दिन आपको पछताना पड़ेगा और आपका दिल मुझे याद कर रोयेगा। लेकिन परमात्मा आपका मंगल करें, सद्बुद्धि दें। और यह कहकर वह वन की ओर चला गया। इस घटना को कई वर्ष बीत गए। भर्तहरि के राज्य में ही नगर का एक दरिद्र ब्राह्मण अपनी इष्ट सिद्धि के लिए किसी देवता की घोर तपस्या या आराध ना कर रहा था। देवता ने प्रसन्न होकर कहा-मैं तुम्हारे तप से बहुत प्रसन्न हूँ, इसलिए वरदान में एक फल देता हूँ। इस फल को साधारण फल नहीं su 282 in
SR No.009993
Book TitleRatnatraya Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSurendra Varni
PublisherSurendra Varni
Publication Year
Total Pages800
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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