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________________ लगते देख और भाई के अनिष्ट की आशंका से उसका मन काँप उठा। विक्रम ने यह बात भाई से कहने के लिए कई बार संकल्प किया। पर वह महाराज का रानी पर प्रेम देखकर कहने का साहस नहीं कर सका । आखिर एक दिन मौका पाकर उसने महाराज से कहना प्रारम्भ किया। पूज्य भाई! आप सब प्रकार से बुद्धिमान हैं, लेकिन आप धोखा खा रहे हैं। आपसे कहने में डर लगता है और न कहूँ तो कुल को दाग लगता है। सुनिये, मेरे बड़े भ्राता! क्या कहूँ, कहा नहीं जाता, पर दुविधा में कहना पड़ रहा है। भाभी के सम्बन्ध में बहुत बुरी बात सुनी है, पर मैंने उसे सुनकर ही सत्य नहीं माना। उसकी पूरी तरह से जाँच की और फिर विश्वास किया। महाराज! आप तो शास्त्रों के जानकार हैं। स्त्रियों की बातों में मधु और हृदय में हलाहल विष भरा रहता है। जो उनको सती-साध्वी समझते रहते हैं, वह बड़ी भूल करते हैं। यहाँ भर्तृहरि ने यह सब सुनकर विक्रम से कहा कि तुम्हें भ्रम हो गया है। पिंगला एक आदर्श नारी है। वह दिन-रात मेरा ही जाप करती रहती है। ऐसी पतिव्रता पर कलंक लगाकर आपने अच्छा नहीं किया। अब तक जो कह दिया सो कह दिया, अब आगे कहने की कोशिश न करना। तुम मेरे भाई हो, इसलिए इतना कह रहा हूँ, नहीं तो सूली पर चढ़ा देता। विक्रम चुपचाप बैठा रहा। उधर पिंगला को भी यह पता चला कि उसके पापकर्म का पता विक्रमादित्य को लग चुका है। उसने उसके लिए त्रियाचरित्र शुरू कर दिए। महाराज के प्रति पहले से भी अधिक प्रेम का प्रदर्शन करने लगी। मौका पाकर पिंगला ने विक्रमादित्य के प्रति कान भरने शुरू कर दिये। महाराज! आप बुरा तो मानेंगे, आपके भाई विक्रम का व्यवहार कुछ अच्छा नहीं है। मैं तो उनकी माता के समान हूँ, पर वह अपने नगर के एक धनिक पुत्र की वधु पर आसक्त हैं। उसने उसके लिए कई दासियाँ भी लगा रखी हैं। पर वह अब तक उसके वश में नहीं आयी, मैं नहीं समझती कि यह बात कितनी सत्य है। इधर तो उसने कहा और उधर उसने नगर सेठ को बुलाकर कह दिया कि जो मैं कह रही हूँ वह करना होगा, नहीं तो मैं तुम्हारी जान भी ले सकती हूँ और तुम्हारा कुछ भी नहीं बचेगा। मरता क्या नहीं करता, क्योंकि सारा नगर जान चुका था कि महाराज पिंगला के हाथों बिक चुके हैं, इसलिये यह जो काम 0 2810
SR No.009993
Book TitleRatnatraya Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSurendra Varni
PublisherSurendra Varni
Publication Year
Total Pages800
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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