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________________ पालन करना भी बड़ा तप है। इन मूलगुणों के प्रभाव से घातिया कर्मों का नाश कर जीव केवलज्ञान प्राप्त कर मुक्त हो जाते हैं। जैसे कढ़ाई में पूड़ी छटपटाती है, उसी प्रकार यह मानव सांसारिक दुःखों से छटपटाता है, परन्तु तप द्वारा ही इसका निवारण होता है। जिस प्रकार जब लोहा वक्र हो जाता है तो उसको सीधा करने के लिए तपाना पड़ता है, उसी प्रकार इन्द्रिय विषय-भोगों और कषायों की निवृत्ति के लिए आत्मा को तपाना ही एकमात्र साधन है। आचार्य कहते हैं कि इच्छाओं का निरोध करना तप है। इच्छाओं का निरोध वानर नहीं, नर कर सकता है। नारकी और देव भी इच्छाओं का निरोध नहीं कर सकते। एक मनुष्य पर्याय ही ऐसी है जहाँ पर नारायण बनने का खेल खेला जा सकता है। जिसे संसार के स्वरूप का बोध हो जाता है, वह तप को अंगीकार कर लेता है। आज से दो हजार वर्ष पूर्व भारत की राजधानी उज्जैयिनी थी उसे आजकल उज्जैन कहते हैं। भर्तहरि व विक्रमादित्य दो भाई थे। भर्तहरि राजा थे। भर्तृहरि धर्मात्मा होने से प्रजा भी धर्मात्मा थी, उसका भाई भी बहुत धर्मात्मा था। विक्रम संवत् भी उसके नाम से चलता है। भर्तृहरि के दो विवाह हुए थे, फिर भी किसी रूपवती नारी से सम्बन्ध मिलने पर उनका तीसरा विवाह भी हो गया। इस नई महारानी का नाम पिंगला था। महारानी पिंगला ज्यादा रूपवती होने से महाराज उस पर ऐसे मोहित हुए कि अपनी विद्या, बुद्धि, विवेक और विचार को ताक पर रख दिया। अब वह पिंगला की कठपुतली बन गये। पिंगला जो भी चाहती, वह ही राजा से करवाती। हम केवल भर्तृहरि को ही दोषी क्यों ठहरायें? बड़े-बड़े महारथी भी कामिनियों के जाल में फँस कर अपनी सारी अक्ल खो बैठते हैं। बड़े-बड़े शूरवीर भी जो संसार में विजय प्राप्त कर सकते हैं, वे भी इनके सामने कायर हो जाते हैं। ये अबला कहे जाने पर भी सबला हैं। जब कोई इनके वश में हो जाता है तो उसका ज्ञान काफूर हो जाता है। महाराज भर्तृहरि महान विद्वान् और बुद्धिमान थे। होनी बलवान होने से उन्होंने महारानी पिंगला को सिर पर चढ़ा लिया। पिंगला एक नीच दरोगा को चाहने लगी। उसके पापाचार का पता विक्रमादित्य को चला। अपने ऊँचे कुल में दाग 0 2800
SR No.009993
Book TitleRatnatraya Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSurendra Varni
PublisherSurendra Varni
Publication Year
Total Pages800
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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