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________________ जो जीव मिथ्यादृष्टि होकर पदार्थों को अन्यथा मानकर अन्यथा परिणमन कराना चाहे, वह स्वयं दुःखी होगा। उसकी मिथ्यामान्यता के अनुसार पदार्थ परिणमेगा नहीं और उसका दुःख मिटेगा नहीं। किन्तु पदार्थ को यथार्थ जानना (स्व को स्व रूप और पर को पर रूप जानना) तथा वे पदार्थ मेरे परिणमाये अन्य रूप परिणमने वाले नहीं हैं – ऐसा मानना, यही दुःख दूर होने का उपाय है। इस प्रकार सम्यक् श्रद्धा, ज्ञान व तदनुरूप सम्यक् आचरण ही दुःख मेटने का सच्चा उपाय है। निज स्वरूप को जाने बिना अज्ञानी अपने को देहरूप ही समझता है। उसे स्वप्न में भी ‘शरीर ही मैं हूँ' ऐसा लगता है। वह पर को अपना मानकर बन्दर की तरह दुःखी हो रहा है। एक बन्दर था, वह जिस वृक्ष पर बैठता था उस वृक्ष को वह अपना मान बैठा। जब हवा चली और उस वृक्ष के सूखे पत्ते गिरने लगे, तब वह बन्दर दुःखी होने लगा कि अरे! मेरे ये पत्ते बिखरे जाते हैं। वैसे ही मोही जीव अज्ञान से देहादिक संयोग को अपना मानते हैं और संयोग दूर होने पर दुःखी होते हैं कि अरे, मेरे ये सब चले जाते हैं। पर ये सब तेरे थे ही कहाँ? वस्तु है किसी दूसरे प्रकार की और मान लेना उसे भिन्न प्रकार की, तो दुःख होगा और यदि वस्तु जैसी है, उसे वैसी मान ले, तो सुख होगा। इसीलिये सम्यक्त्व सदा सुख देता है और मिथ्यात्व सदा आकुलताओं को पैदा करता है। कुत्ता बड़ा स्वामीभक्त होता है। दो रोटी के टुकड़ों में ही 24 घंटे पहरा देता है। आज्ञाकारी होता है। यदि मालिक पर कोई उपद्रव आ जाये, तो तुरन्त मदद करने को तैयार रहता है। और एक शेर होता है, जिसे देखते ही लोग डर जाते हैं। किसी का तो हार्टफेल हो जाता है। कोई-कोई तो शेर से डरकर मर जाते हैं। इतना अहित करने वाला होता है शेर । अब आप बताओ कि जो भला है, उपकारी है, उसकी उपमा देना चाहिये। आप किसी की बड़ी तारीफ करें, 'इनका क्या कहना? ये तो बहुत उपकारी हैं, धर्मात्मा हैं। यह तो एक कुत्ते के समान हैं। तो वे नाराज हो जायेंगे और यदि कह दिया जाये कि ये तो शेर के समान हैं (यानी दूसरों की जान लेते हैं) तो वे खुश हो जायेंगे। यदि आप किसी 0 250
SR No.009993
Book TitleRatnatraya Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSurendra Varni
PublisherSurendra Varni
Publication Year
Total Pages800
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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