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________________ बैठता। मन वह राक्षस है जो हर समय तुझसे काम माँगता है। इसे काम में लगा दो तो लगा दो, नहीं तो वह स्वयं आपको अपने काम में लगा लेगा। हातमताई पिक्चर में मन्त्रों द्वारा अपने कार्य की सिद्धि के अर्थ वश किया एक राक्षस अपने स्वामी से कहता है कि काम दे, नहीं तो तुझे खा जाऊँगा। यह काम बताया, वह काम बताया, आखिर कब तक? इतने काम थे ही कहाँ कि एक समय के लिए भी खाली न रहने पावे वह ? विचारा कि यह तो अच्छी बला मोल ले ली। अच्छाई के लिये सिद्ध किया था इसे परन्तु गले ही पड़ गया। वह अब छोड़े से भी तो नहीं छूटता। विचारकर एक उपाय सूझा। ठीक है, आओ काम बताता हूँ। एक जीना बनाओ, उस पर चढ़ो और उतरो। वह टूट जाये तो फिर बनाओ, फिर चढ़ो और उतरो। बराबर इसी तरह से करते रहो जब तक कि मैं तुम्हें न बुलाऊँ। अब तो सब राक्षसपना हवा हो गया। वह खाली न रहने पाया और स्वामी भय से मुक्त हो गया। इसी प्रकार तू भगवान आत्मा, मन तेरा सेवक, परन्तु एक ऐसा सेवक जो हर समय काम माँगता है, एक क्षण को भी खाली नहीं रह सकता। कार्य न दे तो विकल्पजाल में उलझाकर ऐसा धक्का दे तुझे कि धरातल पर आकर तड़फने लगे। भाई! इस राक्षस को किसी-न-किसी काम में उलझाये रखना श्रेय है, भले ही वह कार्य निष्प्रयोजन क्यों न हो। श्री जिनेन्द्र वर्णी जी ने 'शान्तिपथ प्रदर्शन' ग्रन्थ में ऐसी चार प्रकार की क्रियाओं का वर्णन किया है जिनमें मन को उलझाया जा सकता है - 1. भोगाभिलाष सहित तथा भोगों में रमणता रूप अशुभ क्रिया अर्थात् पापानुबंधी पाप क्रिया। 2. भोगाभिलाष सहित शुभ क्रिया अर्थात् पापानुबन्धी पुण्य रूप क्रिया। 3. भोगाभिलाष से निरपेक्ष, केवल शान्ति की अभिलाषा सहित, शुभ क्रिया अर्थात् पुण्यानुबन्धी पुण्य रूप क्रिया। 4. साक्षात् शान्ति के वेदन के साथ तन्मयता रूप शुद्ध क्रिया। अब विचारना यह है कि मन को कौन-सी क्रिया में जुटाना अधिक 0 183_0
SR No.009993
Book TitleRatnatraya Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSurendra Varni
PublisherSurendra Varni
Publication Year
Total Pages800
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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