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________________ व्यक्ति कैसे उठेगा। उसके शरीर के नीलेपन को देखकर वह स्तब्ध रह गया। सारे शहर में खबर फैल गई। सारे लोग इकट्ठे हो गये। खोजबीन के दौरान पता चला कि किसी बहिन ने सन्यासी को भिक्षा में जहरीले लडडू दिये थे जिसे खाकर इस नौजवान की मृत्यु हुई है। समाचार सुनकर वह बहिन भी देखने के लिये सन्यासी की कुटिया पर पहुँची। यह देखकर वह चकित हो गई कि नौजवान और कोई नहीं उसका ही इकलौता पुत्र था। वह फूट-फूटकर रोने लगी, लोग बड़े हैरान हुये। वह रोते-रोते जोर-जोर से बोलने लगी 'मैं अभागिन । मेरी करनी किसे कहूँ? मेरी करनी ने ही मेरे पुत्र को मारा है। मेरी इच्छा सन्यासी को मारने की थी और मर गया मेरा इकलौता बेटा। मेरी करनी ने ही मुझे डुबोया है। सन्यासी का यह सूत्र शतप्रतिशत सही है - करेगा, सो भरेगा। मैंने इस सत्य को नहीं मानकर अपने बेटे को अपने ही हाथ गँवाया है, परन्तु आज मैं इस सत्य को मान रही हूँ।' बहिन की बात सुनकर सभी स्तब्ध रह ग जैनदर्शन का प्रमुख सिद्धान्त है 'कर्मवाद', जो कहता है कि किसी का बुरा सोचना नहीं और किसी का बुरा करना नहीं। दूसरों के लिये बुरा सोचने वाला और बुरा करने वाला स्वयं ही गड्ढे में गिरता है। कोई जबरदस्ती किसी से पाप नहीं करवाता। यह स्वयं की जिम्मेवारी है कि मैं चाहूँ तो पाप करके दुर्गति के गड्ढे में गिरूँ और चाहूँ तो धर्म करके अपना आत्मकल्याण करूँ। जगत में यदि कोई सार वस्तु है, तो एक मैं हूँ। मेरे सिवाय अन्य समस्त 'पर' हैं। मुनिराज जब आत्मस्वरूप में लीन होते हैं, तब उनका हृदय आनन्दसागर में निमग्न हो जाता है, उन्हें परम शांति और समता का लाभ होता है। अतः आचार्यों का कहना है कि जड़ की आसक्ति को छोड़कर चैतन्य आत्मा को जानने का प्रयास करो। 5. काल द्रव्य - विचित्र है जगत की लीला। सबकुछ परिवर्तनशील है यहाँ । जो आज है, वह कल नहीं। एक नाटक मात्र है, माया है, प्रपंच है, आभास है, मिथ्या है, असत् है। मोहीजीव इसमें उलझते हैं और ज्ञानीजीव इसे देखते ही नहीं। इस 0 168 0
SR No.009993
Book TitleRatnatraya Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSurendra Varni
PublisherSurendra Varni
Publication Year
Total Pages800
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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