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________________ सन्यासी का यह अद्भुत सूत्र एक बहिन को रास नहीं आया। उस बहिन ने मन-ही-मन सोचा कि सन्यासी का यह सूत्र मैं झूठा साबित करके रहूँगी, क्योंकि संसार में देखा तो यह जाता है कि अपराध कोई करता है पर सजा किसी और को मिलती है। भूल डाक्टर करता है पर मरीज मर जाता है। यहाँ तक कि अपने ही शरीर को देखेंगे तो पायेंगे कि भूल तो जीभ करती है, पर दुःखता पेट है। देखने में आँखें भूल करती हैं, पर काँटा पैर में चुभता है। इसलिये सन्यासी का यह सूत्र सर्वथा झूठा है। ऐसे झूठे और अधार्मिक लोग पृथ्वी पर भार हैं, अतः ऐसे दुष्ट लोगों को मारने में भी पाप नहीं लगेगा। __ कुछ सोच-विचार कर उसने दूसरे दिन चार जहरीले लड्डू बनाये और सन्यासी की प्रतीक्षा करती रही। द्वार पर सन्यासी के अलख जगाते ही वह तुरन्त दौड़कर आई और चारों लड्डू सन्यासी के पात्र में डाल दिये। सहज भाव से वे भिक्षा लेकर अपनी कुटिया में पहुंचे। सन्ध्या का समय हो रहा था, विशेष भख नहीं होने से उन्होंने सोचा कि कल खा लंगा। फिर भगवान की पजा–भक्ति में लीन हो गये और पूजा-पाठ पूरा करके सो गये। अर्ध रात्रि के समय किसी ने कुटिया के द्वार खटखटाये । सन्यासी ने द्वार खोला, देखा तो एक बीस वर्ष का नौजवान खड़ा है। उस नौजवान ने कहा-बाबाजी! मैं इस कुटिया में रात्रिवास करना चाहता हूँ। मुझे शहर से आते-आते देरी हो गई है, क्योंकि जो गाड़ी छह बजे पहुँचनी थी वह बारह बजे पहुँची है। स्टेशन पर कोई साधन नहीं मिलने से मैं नजदीक में आपकी कुटिया देखकर यहाँ चला आया हूँ। यहाँ से दो किलोमीटर की दूरी पर मेरा गाँव है। सुबह उठकर अपने गाँव पहुँच जाऊँगा। बाबा जी ने सहर्ष स्वीकृति दे दी। नौजवान ने कहा-बाबा जी! मैं सुबह से भूखा हूँ आपके पास कुछ हो तो मुझ पर कृपा करें। सन्यासी ने बड़ी प्रसन्नता से वह चारों लड्डू उसे दे दिये। उसने भी खुशी से खाये और सो गया। वह नौजवान सो क्या गया, वह सदा के लिये ही सो गया। सुबह हुई तो सन्यासी ने उसे जगाने का प्रयत्न किया। किन्तु मरा हुआ 0 167_n
SR No.009993
Book TitleRatnatraya Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSurendra Varni
PublisherSurendra Varni
Publication Year
Total Pages800
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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