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________________ मिथ्या है। लोकाकाश के शिखर पर जहाँ कि धर्म द्रव्य की सीमा आ जाती है, उनका चलना रुक जाता है और इस प्रकार सभी मुक्त आत्मायें लोक के शिखर पर स्थित हैं। विज्ञान भी मानती है कि खाली आकाश में जहाँ वायु नहीं है, वहाँ से सूर्य की किरणें अथवा रेडियो की विद्युत तरंगें अथवा चुम्बकीय शक्तियाँ कैसे गुजर जाती हैं। वे मानते हैं कि वहाँ भी एक अदृष्ट पदार्थ है, जिसका नाम उन्होंने ‘ईथर' रखा। यही धर्म द्रव्य है। इन छह द्रव्यों के समुदाय को 'संसार' कहते हैं । यह संसार तो स्वार्थ का है। जब तक स्वार्थ रहता है, तब तक लोग पूछते हैं। स्वार्थ निकल जाने पर कोई नहीं पूछता । अतः इस संसार के स्वरूप को समझकर इससे मोह छोड़कर अपना कल्याण करना चाहिये । अच्छे कर्मों का फल अच्छा होता है और बुरे कर्मों का फल बुरा होता है । हम जैसे बीज बोयेंगे, वैसी की फसल काटेंगे। सुख देने पर सुख मिलेगा और दुःख देने पर दुःख मिलेगा । एक सन्यासी जी सत्य का उपदेश देते हुये जनकल्याण करने में संलग्न रहते थे। उनके जीवन का उद्देश्य था कि सभी में धर्म संस्कारों का सिंचन करना और उन्हें दुनियाँ का सत्य बताना । जब भी वे भिक्षा लेने के लिये जाते थे तो उस द्वार पर अलख जगाते हुये कहते थे - करेगा, सो भरेगा। बाबा रोटी खायेगा । उनके इस सूत्र में अनूठा सत्य छिपा हुआ था। जब कोई उनसे इसका अर्थ पूछता तो बे बताते थे- इस जगत का परम नियम है कि जो हम देते हैं, वही हमें मिलता है। जो हम देंगे, वह अनेक गुना होकर हमें मिलेगा। जो नहीं देंगे, वह कभी नहीं मिलेगा। तुम दूसरों के लिये जो सोचते हो, वही तुम्हें मिलने वाला है। सुख देने पर सुख मिलेगा और दुःख देने पर दुःख मिलेगा । शान्ति दो, तो शान्ति मिलेगी और कष्ट दो, तो कष्ट मिलेगा। अर्थात् जैसा करेंगे, वैसा पायेंगे। जो भी व्यक्ति इस सूत्र को अपने जीवन में उतारता है, उसका जीवन स्वर्ग बन जाता है। 1662
SR No.009993
Book TitleRatnatraya Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSurendra Varni
PublisherSurendra Varni
Publication Year
Total Pages800
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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