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________________ का ज्ञान व श्रद्धान हो जाता है। वह जानता है कि जब किसी जीव को मोक्ष होगा तो इसे पहले सच्चे देव-शास्त्र-गुरु की और सात तत्त्वों की श्रद्धा होगी, फिर स्व–पर भेदविज्ञान और आत्मानुभवन होगा। फिर उसके क्रम से श्रावक के व्रतों का धारण और आत्मानुभवन के द्वारा संयम की प्रतिपक्षी कषाय का अभाव होगा, फिर वह मुनिव्रत धारण कर अट्ठाईस मूलगुणों का पालन करेगा, तदनंतर आत्मध्यान की गहनता के द्वारा कर्मों का अभाव करता हुआ, गुणस्थानों में आये कषाय के अन्तिम सूक्ष्मतम अंश का भी नाश करके बारहवें गुणस्थान में आत्मध्यान की ओर भी अधिक गहनता द्वारा दर्शनावरणीय, ज्ञानावरणीय और अन्तराय, इन घातिया कर्मों का भी निर्मूलन करके तेरहवें गुणस्थान में अनन्तदर्शन, अनन्तज्ञान, अनन्तवीर्य और अनन्तसुख को प्राप्त कर केवली भगवान् बन जाता है। केवली भगवान् चौदहवें (आयोगकेवली) गुणस्थान में अन्तिम शुक्लध्यान द्वारा समस्त अघातिया कर्मों को भी नष्ट कर सिद्ध भगवान् बन जाते हैं। समस्त बाधाओं से रहित, आठ कर्मों से रहित, अनन्तदर्शन-सुख–वीर्य आदि अनन्त गुणों से सहित, शरीर से रहित, अमूर्तिक, पुरुषाकार, जन्म-मरण-रहित, अवचिल रूप से विराजमान रहते हैं। उनका संसार में पुनः आवागमन नहीं होता। वह अन्तरात्मा जानता है कि इसी मार्ग से या इन्हीं उपाय से मोक्ष की प्राप्ति होगी। अतः वह जघन्य से मध्यम और मध्यम से उत्तम अन्तरात्मा बनता हुआ मोक्ष प्राप्ति के लिये इन्हीं उपायों को करता है। मोहवश, भ्रमवश, अज्ञानवश बहिरात्मा जीव अपने पास अमृत होते हुये भी उसका पता न पाकर दु:खी हैं और संसार में परिभ्रमण कर रहे हैं। अतः शरीर से भिन्न आत्मा को पहचान कर बहिरात्मपना छोड़कर अन्तरात्मा बनना चाहिये । अन्तरात्मा एवं परमात्मा का वर्णन करते हुये छहढाला ग्रंथ में पंडित दौलतराम जी ने लिखा है मध्यम अन्तर आतम हैं जे, देशव्रती अनगारी। जघन कहे अविरत-समदृष्टि, तीनों शिव-मगचारी।। सकल निकल परमातम वैविध, तिनमें घाति निवारी। श्री अरहन्त सकल परमातम, लोकालोक निहारी ।। 0 1210
SR No.009993
Book TitleRatnatraya Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSurendra Varni
PublisherSurendra Varni
Publication Year
Total Pages800
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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