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________________ [१८] रहने का धर्मोपदेश करते हैं। जो जो यक्ष इनसे विरत नहीं रहते हैं, उनको आपका धर्मोपदेश सुहाता नहीं है। आपके श्रावक जंगलों में एकांतवास करते हैं। वहां पर बड़े-बड़े यक्ष भी निवास करते हैं, जो आपके इस प्रवचन से अ-प्रसन्न हैं । उनको प्रसन्न रखने के लिए भिक्षुओं, भिक्षुणिओं, उपासकों, उपासिकाओं की रक्षा, अ-विहिंसा और सुख-विहार के लिए आटानाटिय रक्षा (अनुमोदनाथ) ग्रहण करें। भगवान की मौन-स्वीकृति पा कर वेस्सवण महाराज ने 'आटानाटिय रक्षा' कही । इसके अंतर्गत उन्होंने सर्वप्रथम भगवान विपस्सी से लेकर शाक्यपुत्र गोतम तक सातों बुद्धों को नमस्कार किया। तत्पश्चात चारों महाराजाओं और उनके प्रभुत्व का वर्णन किया । तदुपरांत रक्षा न मानने वाले यक्षों को प्राप्त होने वाले दंड का उल्लेख किया और अंततः यह भी बतलाया कि यदि कोई अ-मनुष्य द्वेषयुक्त चित्त से श्रावकों के पीछे लग जाये तो उस समय किन यक्षों, महायक्षों, सेनापतियों, महासेनापतियों को टेर देनी चाहिए । तत्पश्चात चारों महाराजा और इसी प्रकार यक्ष भी अपने-अपने आसन से उठ कर और भगवान का अभिवादन कर वहां से अंतर्धान हो गये। रात बीत जाने पर भगवान ने भिक्षुओं को भी उपरोक्त प्रसंग की जानकारी दी और उनसे कहा आटानाटिय रक्षा को सीखो, इसमें कुशल हो जाओ, इसे धारण करो । आटानाटिय रक्षा भिक्षुओं, भिक्षुणियों, उपासकों और उपासिकाओं के बचाव, अभिरक्षण, अविहिंसा एवं सुख-विहार के लिए सार्थक है। १०. संगीतिसुत्त एक समय भगवान भिक्षुओं के महासंघ के साथ मल्ल-देश में चारिका करते हुए पावा-नामक नगर में पहुँचे । वहां पर नगरवासियों के अनुरोध पर भगवान ने उनके द्वारा हाल ही में बनाये गये सन्थागार (प्रजातंत्र भवन) में आकर धार्मिक कथा सुना कर उन्हें संप्रहर्षित किया। नगरवासियों के चले जाने के पश्चात भगवान ने भिक्षु-संघ को धार्मिक कथा कहने के लिए आयुष्मान सारिपुत्त से कहा और स्वयं विश्राम करने के लिए लेट गये । आयुष्मान सारिपुत्त ने भिक्षुओं को संबोधित करते हुए कहा कि निग्रंथ नाटपुत्त ने पावा में 28 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.009978
Book TitleDighnikayo Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVipassana Research Institute Igatpuri
PublisherVipassana Research Institute Igatpuri
Publication Year1998
Total Pages338
LanguageSanskrit
ClassificationInterfaith & Buddhism
File Size11 MB
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