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________________ ६२ (२.३.१३९-१४०) भविस्सन्ति... बहुस्सुता भविस्सन्ति... आरद्धवीरिया भविस्सन्ति... उपट्ठितस्सी भविस्सन्ति... पञ्ञवन्तो भविस्सन्ति, वुद्धियेव, भिक्खवे, भिक्खूनं पाटिकङ्क्षा, नो परिहानि । यावकीवञ्च, भिक्खवे, इमे सत्त अपरिहानिया धम्मा भिक्खूसु ठस्सन्ति, इमेसु च सत्तसु अपरिहानियेसु धम्मेसु भिक्खू सन्दिस्सिरसन्ति, वुद्धियेव, भिक्खवे, भिक्खून पाटिकङ्क्षा, नो परिहानि" । दीघनिकायो-२ तं सुणाथ; १३९. “अपरेपि वो, भिक्खवे, सत्त अपरिहानिये धम्मे देसेस्सामि, साधुकं मनसिकरोथ; भासिस्सामी 'ति । “एवं, भन्ते" ति खो ते भिक्खू भगवतो पच्चस्सोसुं । भगवा एतदवोच - "यावकीवञ्च, भिक्खवे, भिक्खु सतिसम्बोज्झङ्गं भावेस्सन्ति... पे०... धम्मविचयसम्बोज्झङ्गं भावेस्सन्ति... वीरियसम्बोज्झङ्गं भावेस्सन्ति... पीतिसम्बोज्झङ्गं भावेस्सन्ति... पस्सद्धिसम्बोज्झङ्ग भावेस्सन्ति... समाधिसम्बोज्झङ्गं भावेस्सन्ति... उपेक्खासम्बोज्झङ्गं भावेस्सन्ति, वुद्धियेव, भिक्खवे, भिक्खूनं पाटिकमा, नो परिहानि । " यावकीवञ्च, भिक्खवे, इमे सत्त अपरिहानिया धम्मा भिक्खूसु ठस्सन्ति, इमेसु च सत्तसु अपरिहानियेसु धम्मेसु भिक्खू सन्दिस्सिस्सन्ति, वुद्धियेव, भिक्खवे, भिक्खूनं पाटिकङ्क्षा नो परिहानि । १४०. “अपरेपि वो, भिक्खवे, सत्त अपरिहानिये धम्मे देसेस्सामि, तं सुणाथ; साधुकं मनसिकरोथ; भासिस्सामी 'ति । “ एवं, भन्ते "ति खो ते भिक्खू भगवतो पच्चस्सोसुं । भगवा एतदवोच - “यावकीवञ्च, भिक्खवे, भिक्खू अनिच्चसञ्ञ भावेस्सन्ति...पे०... अनत्तसञ भावेस्सन्ति... असुभसञ्ञ भावेस्सन्ति... आदीनवस भावेस्सन्ति... पहानस भावेस्सन्ति... विरागस भावेस्सन्ति... निरोधसञ्ञ भावेस्सन्ति, वुद्धियेव, भिक्खवे, भिक्खूनं पाटिकवा, नो परिहानि । “यावकीवञ्च, भिक्खवे, इमे सत्त अपरिहानिया धम्मा भिक्खूसु ठस्सन्ति, इमेसु Jain Education International 62 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.009977
Book TitleDighnikayo Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVipassana Research Institute Igatpuri
PublisherVipassana Research Institute Igatpuri
Publication Year1998
Total Pages358
LanguageSanskrit
ClassificationInterfaith & Buddhism
File Size13 MB
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