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________________ (२.३.१३८-१३८) ३. महापरिनिब्बानसुत्तं ६१ साधुकं मनसिकरोथ; भासिस्सामी"ति । “एवं, भन्ते''ति खो ते भिक्खू भगवतो पच्चस्सोसुं। भगवा एतदवोच __“यावकीवञ्च, भिक्खवे, भिक्खू न कम्मारामा भविस्सन्ति न कम्मरता न कम्मारामतमनुयुत्ता, बुद्धियेव, भिक्खवे, भिक्खूनं पाटिकवा, नो परिहानि । "यावकीवञ्च, भिक्खवे, भिक्खू न भस्सारामा भविस्सन्ति न भस्सरता न भस्सारामतमनुयुत्ता, वुद्धियेव, भिक्खवे, भिक्खूनं पाटिकङ्खा, नो परिहानि | “यावकीवञ्च, भिक्खवे, भिक्खू न निद्दारामा भविस्सन्ति न निद्दारता न निद्दारामतमनुयुत्ता, वुद्धियेव, भिक्खवे, भिक्खूनं पाटिकङ्खा, नो परिहानि । “यावकीवञ्च, भिक्खवे, भिक्खू न सङ्गणिकारामा भविस्सन्ति न सङ्गणिकरता न सङ्गणिकारामतमनुयुत्ता, वुद्धियेव, भिक्खवे, भिक्खूनं पाटिकवा, नो परिहानि ।। ___“यावकीवञ्च, भिक्खवे, भिक्खू न पापिच्छा भविस्सन्ति न पापिकानं इच्छानं वसं गता, वुद्धियेव, भिक्खवे, भिक्खूनं पाटिकङ्खा, नो परिहानि । “यावकीवञ्च, भिक्खवे, भिक्खू न पापमित्ता भविस्सन्ति न पापसहाया न पापसम्पवङ्का, वुद्धियेव, भिक्खवे, भिक्खूनं पाटिकङ्खा, नो परिहानि । “यावकीवञ्च, भिक्खवे, भिक्खू न ओरमत्तकेन विसेसाधिगमेन अन्तरावोसानं आपज्जिस्सन्ति, वुद्धियेव, भिक्खवे, भिक्खूनं पाटिकङ्खा, नो परिहानि । “यावकीवञ्च, भिक्खवे, इमे सत्त अपरिहानिया धम्मा भिक्खूसु ठस्सन्ति, इमेसु च सत्तसु अपरिहानियेसु धम्मेसु भिक्खू सन्दिस्सिस्सन्ति, वुद्धियेव, भिक्खवे, भिक्खून पाटिकङ्खा, नो परिहानि। १३८. “अपरेपि वो, भिक्खवे, सत्त अपरिहानिये धम्मे देसेस्सामि...पे०... यावकीवञ्च, भिक्खवे, भिक्खू सद्धा भविस्सन्ति...पे०... हिरिमना भविस्सन्ति... ओत्तप्पी 61 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.009977
Book TitleDighnikayo Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVipassana Research Institute Igatpuri
PublisherVipassana Research Institute Igatpuri
Publication Year1998
Total Pages358
LanguageSanskrit
ClassificationInterfaith & Buddhism
File Size13 MB
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