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________________ [२६] इधर अम्बठ्ठ माणवक ने भगवान के चंक्रमण करते हुए उनके शरीर पर महापुरुषों के बत्तीसों लक्षण देख लिये । तत्पश्चात वह भगवान की अनुमति प्राप्त कर अपने आचार्य पोक्खरसाति के पास चला आया । पोक्खरसाति को उसने भगवान के साथ हुए अपने संलाप का ब्यौरा दिया और यह भी कहा कि भगवान की जो ख्याति फैल रही है वह सही है क्योंकि मैंने उनके शरीर पर विद्यमान बत्तीसों महापुरुष - लक्षण देख लिये हैं । पोक्खरसाति ने अम्बट्ट माणवक को भगवान के साथ अभद्रतापूर्ण आचरण करने के लिए बुरा-भला कहा और उसे अपने पास से दूर हटाया । अगले दिन पोक्खरसाति स्वयं भगवान के दर्शनार्थ गया और अम्बट्ट के बाल-व्यवहार के लिए उनसे क्षमा-याचना की। भगवान ने अम्बट्ट के सुखी होने का आशीर्वचन कहा । पोक्खरसाति ने भी भगवान के शरीर पर बत्तीसों महापुरुष - लक्षण देख लिये । तत्पश्चात उसने भिक्षु संघ सहित भगवान को भोजन के लिए आमंत्रित किया। भोजन करवा चुकने के पश्चात वह भगवान के पास एक नीचे आसन पर बैठ गया । तब भगवान ने उसे आनुपूर्वी कथा कही जैसे कि दान-कथा, शील-कथा, स्वर्ग-कथा; भोगों के दुष्परिणाम; अपकार, मलिनकरण; और गृह त्यागने के माहात्म्य को प्रकाशित किया । जब भगवान ने पोक्खरसाति को उपयुक्त-चित्त, मृदु-चित्त, आवरणरहित-चित्त, उद्गत-चित्त ( प्रसन्न - चित्त) जान लिया तब उसे बुद्धों का स्वयं जाना हुआ धर्मोपदेश - दुःख-कारण- विनाश-मार्ग - प्रकाशित किया । तत्पश्चात जैसे शुद्ध, निर्मल वस्त्र को रंग अच्छी तरह पकड़ लेता है, वैसे ही पोक्खरसाति को उसी आसन पर बैठे-बैठे विरज, विमल, धर्मचक्षु - 'जो कुछ उत्पन्न होने वाला ( समुदयधर्मा) है, वह सब कुछ नाशवान (निरोधधर्मा) है' - उत्पन्न हुआ । तदुपरांत पोक्खरसाति ब्राह्मण ने अपने पुत्र, भार्या, परिषद तथा अमात्यों के साथ भगवान की शरण ग्रहण की, और धर्म तथा भिक्षु संघ की भी । Jain Education International 36 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.009976
Book TitleDighnikayo Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVipassana Research Institute Igatpuri
PublisherVipassana Research Institute Igatpuri
Publication Year1998
Total Pages358
LanguageSanskrit
ClassificationInterfaith, Buddhism, R000, & R005
File Size13 MB
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