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________________ __ [२७] ४. सोणदण्डसुत्त एक समय भगवान एक बड़े भिक्षु-संघ के साथ अङ्ग देश में विचरते हुए चम्पा पहुँचे और वहां गग्गरा पुष्करिणी के तीर पर विहार करने लगे। उस समय सोणदण्ड नाम का ब्राह्मण मगधराज बिम्बिसार द्वारा प्रदत्त चम्पा का स्वामी हो कर रहता था । अन्य ब्राह्मणों के साथ भगवान के दर्शनार्थ जाने का उसका मन हुआ परंतु कुछ एक ब्राह्मणों ने उसे वहां जाने के लिए हतोत्साहित किया और अनेक प्रकार की युक्तियां देते हुए कहा कि श्रमण गौतम को ही उसके दर्शनार्थ आना चाहिए। इस पर सोणदण्ड ने उनकी युक्तियों का खंडन करते हुए, भगवान के कितने ही अन्य गुणों का बखान करते हुए यह भी कहा कि वे आर्यशीलयुक्त, काम-राग-रहित, महापुरुष के शरीर लक्षणों से युक्त, चारों परिषदों से सम्मानित, अनुपम विद्या और आचरण के कारण यशस्वी और चम्पा में आने के कारण हमारे अतिथि हैं । उनकी जितनी प्रशंसा की जाये, वह कम है । अतः मुझे ही भगवान के दर्शनार्थ जाना चाहिए । तत्पश्चात वह ब्राह्मण-जन के साथ गग्गरा पुष्करिणी गया । वहां भगवान ने उससे यह प्रश्न पूछा कि ब्राह्मण लोग कितने अंगों से युक्त पुरुष को 'ब्राह्मण' कहते हैं । इस पर सोणदण्ड ने उत्तर दिया कि ब्राह्मण लोग पांच अंगों से युक्त पुरुष को 'ब्राह्मण' कहते हैं । ये अंग हैं - (१) वह माता और पिता – दोनों ओर से सुजात, सात पीढ़ी तक संशुद्ध, और जाति के मामले में सर्वथा दोषरहित हो । (२) वह वेदपाठी; मंत्रधर; निघंटु; कैटभ, शिक्षा, अक्षरप्रभेद एवं इतिहास-सहित तीनों वेदों में पारंगत; पदक; वैयाकरण तथा लोकायत एवं महापुरुष-लक्षणों का जानकार हो । (३) गौर-वर्ण, सुंदर एवं दर्शनीय हो । (४) शील में खूब पुष्ट हो । (५) पंडित, मेधावी, यज्ञ-दक्षिणा ग्रहण करने वालों में प्रथम या द्वितीय हो। तब भगवान द्वारा यह पूछा गया कि क्या इन पांच अंगों में से किन्हीं अंगों को छोड़ देने पर भी कोई पुरुष 'ब्राह्मण' कहला सकता है ? इस पर सोणदण्ड ने एक-एक करके वर्ण, मंत्र और जाति को नकारते हुए कहा कि शील और मेधा (याने प्रज्ञा) इन दो अंगों से युक्त पुरुष को भी 'ब्राह्मण' कह सकते हैं। अपने इस कथन की पुष्टि में उसने अपने भांजे अंगक का उदाहरण देते हुए कहा कि वह वर्णवान, मंत्रधर और जाति के मामले में सर्वथा दोषरहित है; परंतु यदि वह हिंसा, चोरी, परस्त्रीगमन, असत्यभाषण और मद्यपान - यह सभी कुछ करता हो तो ऐसे में वर्ण, मंत्र और जाति का क्या महत्व है ? भगवान द्वारा यह पूछे जाने पर कि क्या उपरोक्त दो अंगों में से किसी एक को छोड़ देने 37 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.009976
Book TitleDighnikayo Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVipassana Research Institute Igatpuri
PublisherVipassana Research Institute Igatpuri
Publication Year1998
Total Pages358
LanguageSanskrit
ClassificationInterfaith, Buddhism, R000, & R005
File Size13 MB
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