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________________ वास्तविक शांति की अनुभूति करने का मार्ग दिखाया | धम्म के सुस्पष्ट, सुनिश्चित, हितकारी, सहज ज्ञात होने वाले, यहीं और अभी फल देने वाले, क्रमशः मुक्ति के लक्ष्य की ओर ले जाने वाले पहलू ने विभिन्न वर्ग के लोगों को अपनी ओर आकर्षित किया, जिसके फलस्वरूप धम्म विश्वव्यापी हुआ | इन संगीतियों के आयोजन का मुख्य उद्देश्य बुद्ध-वचनों को अपने शुद्ध रूप में सुरक्षित रखना था जिससे कि किन्हीं अज्ञानी लोगों द्वारा इसमें अपनी ओर से कुछ जोड़ कर इसे दूषित न कर दिया जाय । इन संगीतियों की आवश्यकता इसलिए भी पड़ी क्योंकि तीसरी संगीति तक भी बुद्ध-वचन लिखे नहीं जा सके थे, केवल स्मृतिबद्ध किये जाते रहे । संघ-विषयक अनुशासन को शुद्ध रूप में बनाये रखने तथा उसमें किसी प्रकार के विवाद के खड़े होने पर ये संगीतियां एक मंच का भी कार्य करती थीं। अब तक आयोजित हुई छः संगीतियों का संक्षिप्त विवरण इस प्रकार है : पहली धम्म-संगीति राजगीर (राजगृह) में राजा अजातसत्तु (अजातशत्रु) के संरक्षण में भगवान बुद्ध के महापरिनिर्वाण के तीन माह के पश्चात ५४४ ईसा पूर्व में संपन्न हुई। इसी धम्म संगीति में प्रथम बार समस्त बुद्धवाणी को एकत्रित किया गया । इस संगीति की अध्यक्षता महाकस्सप थेर ने की, उपालि ने विनय का पाठ किया तथा आनन्द ने धम्म का । इसमें पांच सौ अरहतों ने भाग लिया तथा यह संगीति सात महीनों तक चली। इस प्रकार विनय और धम्म का संग्रह किया गया । दीघनिकाय अट्ठकथा की निदान कथा से यह ज्ञात होता है कि 'धम्म' शब्द का प्रयोग सुत्त तथा अभिधम्म के लिए किया गया। दूसरी धम्म-संगीति पहली संगीति के सौ वर्ष बाद वेसाली (वैशाली) के वाळुकाराम में राजा काळासोक के संरक्षण में आयोजित की गई। विनय के नियमों को लेकर एक बड़ा विवाद उठ खड़ा हुआ था, जिसका निर्णय करने के लिए इस संगीति का आयोजन हुआ। इसमें सात सौ भिक्षुओं ने भाग लिया तथा इसकी अध्यक्षता रेवत थेर ने की । इसमें बुद्ध-वचन का पुनः संगायन किया गया । तीसरी धम्म-संगीति ३२६ ईसा पूर्व पाटलिपुत्त (पाटलिपुत्र) के असोकाराम नामक विहार में राजा धम्मासोक (सम्राट अशोक) के संरक्षण में हुई। थेर मोग्गलिपुत्त तिस्स ने इसकी अध्यक्षता की तथा एक हजार स्थविर भिक्षुओं ने इसमें भाग लिया । यह संगीति नौ मास तक चली । इस संगीति के दौरान थेर मोग्गलिपुत्त तिस्स ने मिथ्या मतों का खंडन करते हुए पुनः शुद्ध धम्म के स्वरूप का प्रतिपादन कर कथावत्थु नामक ग्रंथ का संकलन किया। यह ग्रंथ तिपिटक परंपरा के अंतर्गत अभिधम्म-पिटक का एक अभिन्न अंग माना जाने लगा। बुद्ध-वचन के संगायन के पश्चात सम्राट अशोक ने सुदूर देशों में धम्म प्रचार हेतु नौ धम्मदूतों की परिषदें भेजी। इन थेरों ने धम्म के ‘पटिपत्ति' पक्ष पर बल देते हुए धम्म को विश्वव्यापी बनाया । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.009976
Book TitleDighnikayo Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVipassana Research Institute Igatpuri
PublisherVipassana Research Institute Igatpuri
Publication Year1998
Total Pages358
LanguageSanskrit
ClassificationInterfaith, Buddhism, R000, & R005
File Size13 MB
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