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________________ प्रस्तावना पालि तिपिटक का संक्षिप्त परिचय भगवान बुद्ध • समस्त संसार को शुद्ध धर्म के आधार पर सुख-शांतिमय जीवन जीने के लिए एक पावन पथ का प्रज्ञापन किया। इससे तत्कालीन भारत के इतिहास पर भी प्रचुर प्रकाश पड़ा और इसी से पालि साहित्य का उषाकाल भी प्रारंभ हुआ । भगवान ने जिस दिन बुद्धत्व प्राप्त किया तथा जिस दिन महापरिनिर्वाण प्राप्त किया, उसके मध्य पैंतालीस वर्षों तक जहां कहीं, जिस किसी को, जो भी उपदेश दिया, उन समस्त बुद्ध वचनों का संग्रह तिपिटक कहलाया । तिपिटक का अर्थ है - तीन पिटक या पिटारियां या धर्म साहित्य-संग्रह । इन तीन पिटकों में बुद्ध वाणी का संग्रह किया गया है । तीन पिटकों के नाम हैं- विनय-पिटक, सुत्त-पिटक और अभिधम्मपिटक । बुद्ध वचनों को संकलित करने हेतु छः ऐतिहासिक धम्म संगीतियों का आयोजन किया गया । इन्हें धम्म-संगीति इसलिए कहा गया क्योंकि इनमें धम्म के मूल पाठ की प्रत्येक पंक्ति का पाठ एक ज्येष्ठ थेर या अग्रज भिक्षु द्वारा किया जाता था तथा उसके बाद सभा में उपस्थित सभी अन्य भिक्षुगण इसका संगायन करते थे । संगायन को प्रामाणिक तभी मानते थे जबकि सभी उपस्थित भिक्षु एकमत हो उसे स्वीकृत करते थे । 1 धम्म ( शुद्ध धर्म) के दो प्रमुख पक्ष हैं- पहला सैद्धांतिक पक्ष यानि मूल पाठ जिसे परियत्ति कहते हैं और दूसरा व्यावहारिक यानि प्रायोगिक पक्ष जिसे पटिपत्ति कहते हैं । इन संगीतियों का आयोजन धम्म के परियत्ति पक्ष को शुद्ध रूप में सुरक्षित रखने के लिए हुआ | बुद्ध वचनों का दैनिक जीवन में अभ्यास ही पटिपत्ति है । यही धम्म का वास्तविक प्रचार वाहन है । धम्म की वास्तविक लोकप्रियता राजकीय संरक्षण या लोगों द्वारा सैद्धांतिक पक्ष की स्वीकृति मात्र से नहीं थी, बल्कि इसलिए थी कि भगवान बुद्ध ने मन को शुद्ध करने की विद्या - विपस्सना साधना के अभ्यास की विधा स्पष्ट रूप से सिखायी । उन्होंने हमारे दुःख का कारण बताया तथा कारण को मिटा कर Jain Education International 19 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.009976
Book TitleDighnikayo Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVipassana Research Institute Igatpuri
PublisherVipassana Research Institute Igatpuri
Publication Year1998
Total Pages358
LanguageSanskrit
ClassificationInterfaith, Buddhism, R000, & R005
File Size13 MB
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