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________________ सद्धर्मसंरक्षक को मानते हैं। मुख पर मुंहपत्ती बाँधते नहीं है। सर्वथा परिग्रह के त्यागी होते हैं। गुजरात देश में आगमन संघपति की विनती को स्वीकार कर आपश्री वृद्धिचन्दजी के साथ गुजरात देश के लिये रवाना हो गये। जब संघ प्रांतीज पहुंचा तब मुनि नेमसागर के शिष्य कपूरसागर ने आपके साथ कई विषयों पर शास्त्रार्थ किया और वह परास्त होकर आपकी विद्वत्ता और शुद्ध चारित्र पर मंत्रमुग्ध होकर आप का प्रेमी बन गया । वहाँ से आप विहार करते हुए वृद्धिचन्दजी के साथ अहमदाबाद पहुचे । आप यहाँ के लिये एकदम अपरिचित थे । न आप किसी को जानते थे और न ही कोई आप को जानता था। आपके लिये यह सारा देश ही अपरिचित था। आप गुरु-शिष्य शहर के बाहर हठीभाई की वाडी में जाकर ठहर गये। प्रातःकाल नगर में अनेक जिनमंदिरों के दर्शन करने के लिये आप वृद्धिचन्दजी के साथ निकल पडे । रास्ते में हेमाभाई नगरशेठ मिले। पहले से कोई जान-पहचान न होने से "कोई साधारण मुनि आये होंगे" ऐसा सोचकर आपकी तरफ उसने कोई ध्यान न दिया और आगे को चले गये। इधर आप भी सब मंदिरों के दर्शन करके वापिस हठीभाई की वाडी में चले गये। आपश्री अजमेर पधार चुके थे। वहाँ साधुमार्गी रतनचन्द मुनि के साथ आप का शास्त्रार्थ भी हुआ था । इसलिये वहा के श्रीसंघ पर आपकी विद्वत्ता, त्याग, वैराग्य तथा चारित्र की गहरी छाप पड चुकी थी। वहाँ के सकल संघ से आपका परिचय भी था। Shrenik/DIA-SHILCHANDRASURI / Hindi Book (07-10-2013)/(1st-11-10-2013)(2nd-22-10-2013) p6.5 [90]
SR No.009969
Book TitleSaddharma sanrakshaka Muni Buddhivijayji Buteraiji Maharaj ka Jivan Vruttant
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHiralal Duggad
PublisherBhadrankaroday Shikshan Trust
Publication Year2013
Total Pages232
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size1 MB
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