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________________ ८९ गुजरात की ओर प्रस्थान जिनप्रतिमा उच्छेदक और निन्दक है, उनका वेष भी स्वलिंगी का नहीं है। यति लोग जिनप्रतिमा को मानते तो हैं, पर उनका आचार आगमानुकूल जैनमुनि का नहीं है । बीकानेर आदि नगरों में खरतरगच्छ की क्रिया करनेवाले यति होने से हमने भी देखा-देखी इस क्रिया को अपनाया है। हमारे ख्याल से तो इस काल में आगमानुकूल शुद्ध सामाचारी पालन करनेवाला कोई साधु-साध्वी नहीं है, पर प्रभु महावीर का शासन इक्कीस हजार वर्षों तक चलेगा ऐसा आगम का फरमान है। कुछ समझ में नहीं आता कि क्या किया जावे?" संघपति - "गुरुदेव ! आप संघ के साथ गुजरात पधारने की कृपा करें । वहां आपश्री को आगमानुकूल शुद्ध सामाचारी पालन करनेवाले, जिनप्रतिमा और जिनतीर्थों के उपासक, श्रीवीर परमात्मा द्वारा कथित आगमानुकूल वेषधारी तथा शुद्ध क्रियाओं को धारण करनेवाले, जो मुँहपत्ती को मुख पर नहीं बाँधते, परंतु मुंहपत्ती को हाथ में रखकर बोलते समय मुख के सामने रखकर बोलते हैं, कंचन, कामिनी, जर, जोरू, जमीन (धन, स्त्री तथा धरती) आदि परिग्रह के सर्वथा त्यागी हैं, ऐसे संवेगी साधुओं के दर्शन होंगे । वहाँ पहुँच कर आपकी सब मनोकामनाएं सफल होंगी और शुद्ध गुरु की प्राप्ति भी हो जावेगी।" बूटेरायजी - "भाई ! संवेगी साधु कैसे हैं ? उन्हें तो हमने न कभी देखा है, न जानते-पहचानते ही हैं। क्या वे शास्त्रों में वर्णन किये हुए आचार को पालन करनेवाले जैन साधु हैं ?" संघपति - "हां महाराज ! वे ही सच्चे जैन साधु हैं। ऐसे संवेगी साधु विशेषरूप से आजकल गुजरात में विचरते हैं। वे जिनप्रतिमा Shrenik/DIA-SHILCHANDRASURI/ Hindi Book (07-10-2013)/(1st-11-10-2013) (2nd-22-10-2013) p6.5 [89]
SR No.009969
Book TitleSaddharma sanrakshaka Muni Buddhivijayji Buteraiji Maharaj ka Jivan Vruttant
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHiralal Duggad
PublisherBhadrankaroday Shikshan Trust
Publication Year2013
Total Pages232
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size1 MB
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