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________________ ९१ गुजरात देश में आगमन अहमदाबाद में अजमेरवाले गज्जरमल लूणिया की दुकान थी। वह बहुत बडा श्रीमंत गृहस्थ था । अहमदाबाद की इसकी दुकान पर इसका भानजा चतरमल रहता था । जब संघ के साथ आपने गुजरात की तरफ विहार किया था, तब गज्जरमल लूणिया ने अहमदाबाद अपनी दुकान पर चतरमल को पत्र लिख दिया था । जिसमें महाराजश्री के वैराग्य आदि गुणों की बहुत प्रशंसा लिखी थी और गुजरात की तरफ विहार करने के समाचार भी लिखे थे । चतरमल ने ये सब समाचार हेमाभाई से कह दिये थे। जब हेमाभाई उजमबाई की धर्मशाला में पहुंचे तब उन्हें याद आया कि "जिन शुभ आकृति और समभाव आदि गुणों युक्त मुनियों को मैंने स्वयं रास्ते में देखा था, क्या चतरमल ने जिन मुनिराजों का मुझसे जिकर किया था संभवतः ये दोनों वहीं होंगे !" ऐसी कल्पना कर नगरसेठ हेमाभाई ने आपको बुला लाने के लिये अपने एक आदमी को हठीभाई की वाडी में भेजा । आपका विचार भी शहर में रहने का था क्योंकि हठीभाई की वाडी से शहर बहुत दूर पडता था । आप उस आदमी के साथ उजमबाई की धर्मशाला में चले आये । उस समय मुनि दानविजयजी वहाँ व्याख्यान वाँचते थे। नगरसेठ ने महाराजश्री से सब समाचार पूछे। सहज रूप से बातचीत होने पर सेठ को परम संतोष हुआ । “सच है, गुणग्राही जनों को गुणी के गुण आह्लाद दिये बिना रहते नहीं।" । दूसरे दिन हेमाभाई सेठ डेलां के उपाश्रय में मुनि सौभाग्यविजयजी के व्याख्यान में नित्य के नियमानुसार गये । वहाँ समय पाकर सेठ ने मुनि सौभाग्यविजयजी से कहा कि- "यहा दो पंजाबी मुनि आये हैं। वे बहुत गुणी है, ज्ञानवान है, क्रियावान है Shrenik/DIA-SHILCHANDRASURI / Hindi Book (07-10-2013)/(1st-11-10-2013) (2nd-22-10-2013) p6.5 [91]
SR No.009969
Book TitleSaddharma sanrakshaka Muni Buddhivijayji Buteraiji Maharaj ka Jivan Vruttant
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHiralal Duggad
PublisherBhadrankaroday Shikshan Trust
Publication Year2013
Total Pages232
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size1 MB
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