SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 94
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ८६ सद्धर्मसंरक्षक बुझाने के लिये आपने वि० सं० १९०८ (ई० स० १८५१) को अपने शिष्यों के साथ गुजरात की ओर विहार किया, ताकि सद्गुरु की तलाश करके अपने मन की अभिलाषा को पूर्ण कर सकें। गुजरात की ओर प्रस्थान चौमासे बाद मुनि प्रेमचन्दजी भी दिल्ली आ गये । आपने अपने चारों शिष्यों (प्रेमचन्द, मूलचन्द, वृद्धिचन्द, आनन्दचन्द) के साथ गुजरात की तरफ विहार कर दिया। ग्रामानुग्राम विहार करते हुए आप पांचों मुनिराज जयपुर आये और वि० सं० १९०९ (ई० स० १८५२) का चौमासा यहीं पर किया । चौमासे के पश्चात् पांचों मुनियों ने विहार किया । किशनगढ होते हुए अजमेर पहुँचे और अजमेर से नागौर पहुंचने पर श्रीवृद्धिचन्दजी के पैरों में पीडा हो जाने के कारण परवश यहाँ रुकना पडा । मुनि मूलचन्दजी यहाँ से आगे के लिये विहार कर गये । आनन्दचन्द दीक्षा छोडकर भाग गया और अन्यत्र जाकर यति के रूप में ज्योतिषी का धन्धा करने लगा। नागौर में बीकानेर के भाई विनती करने आये। कुछ दिनों में वृद्धिचन्दजी को पैरों की पीडा से आराम आ गया । पश्चात् आपने वृद्धिचन्दजी के साथ बीकानेर की तरफ विहार किया । वि० सं० १९१० (ई० स० १८५३) का चौमासा प्रेमचन्दजी ने नागौर में किया, मूलचन्दजी ने पालीताना में किया और बूटेरायजी ने वृद्धिचन्दजी के साथ बीकानेर में किया । इस समय बीकानेर में २७०० घर ओसवाल जैनों के थे। जिन में आधे श्वेताम्बर थे और आधे स्थानकमार्गी संप्रदाय को माननेवाले थे । यहाँ संवेगी मुनिराजों को पधारे शताब्दियाँ बीत गयी थीं। आपके पधारने से बीकानेर के श्रावकों में बहुत उल्लास भर गया । अनेक प्रकार के Shrenik/DIA-SHILCHANDRASURI / Hindi Book (07-10-2013) 1(1st-11-10-2013) (2nd-22-10-2013) p6.5 [86]
SR No.009969
Book TitleSaddharma sanrakshaka Muni Buddhivijayji Buteraiji Maharaj ka Jivan Vruttant
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHiralal Duggad
PublisherBhadrankaroday Shikshan Trust
Publication Year2013
Total Pages232
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size1 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy