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________________ ८७ गुजरात की ओर प्रस्थान धर्मकार्य हुए । खरतरगच्छ के यतियों ने आपको अपने पोषाल में ठहरने की विनती की । यहां पर आपने श्रीसिद्धाचलजी और श्रीकेसरियानाथजी की बहुत महिमा सुनी। आपश्री की इन दोनों तीर्थों की यात्रा करने की भावना हई । बीकानेर के चौमासे में आपके पास अजमेर के संघ का एक पत्र आया कि चौमासे उठे आपश्री अजमेर अवश्य पधारने की कृपा करें, क्योंकि यहाँ पर बाइसटोले का (स्थानकमार्गी) साधु रतनचन्द आपके साथ जिनप्रतिमा मानने के विषय पर शास्त्रार्थ करना चाहता है। चौमासे के बाद आप वृद्धिचन्दजी के साथ अजमेर शीघ्र पधारने की कृपा करना। __चौमासे उठते ही आप दोनों अजमेर पधारे । यहाँ पर आपका शास्त्रार्थ ऋषि रतनचन्द के साथ जिनप्रतिमा को मानने के विषय पर हुआ । वह परास्त होकर अजमेर से नौ दो ग्यारह हो गया। यहाँ से केसरियाजी की यात्रा के लिये छ'री पालता संघ निकला। आप दोनों मुनिराज भी इस संघ के साथ केसरियाजी की यात्रा के लिये पधारे । यहाँ पर श्रीआदिनाथ (दादा ऋषभदेव) की चमत्कारी प्रतिमा के दर्शन कर बहुत हर्षित और आनन्दित हुए। श्रीकेसरियाजी में गुजरात देश के इलोल-नगरवाले सेठ बेचरदास मानचंद का छ'री पालता संघ यात्रा के लिये आया हुआ था। उसने भी बडी भावभक्ति से प्रभु की पूजा की । प्रभु की पूजा करने के पश्चात् सकल संघ के यात्री आप दोनों मुनिराजों के दर्शन करने को धर्मशाला में आये। वे लोग आपके वेष तथा क्रिया को देखकर आश्चर्यचकित हो गये । संघपति ने आपश्री को वन्दन करके सकुचाते हुए पूछा - Shrenik/DIA-SHILCHANDRASURI / Hindi Book (07-10-2013)/(1st-11-10-2013) (2nd-22-10-2013) p6.5 [8]
SR No.009969
Book TitleSaddharma sanrakshaka Muni Buddhivijayji Buteraiji Maharaj ka Jivan Vruttant
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHiralal Duggad
PublisherBhadrankaroday Shikshan Trust
Publication Year2013
Total Pages232
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size1 MB
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