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________________ उत्कट विरोध का डटकर मुकाबिला वृद्धिचन्दजी के पिता का नाम लाला धर्मजस तथा माता का नाम कृष्णादेवी था । आप बीसा ओसवाल गद्दिया गोत्रीय जैन धर्मानुयायी थे। आपका जन्म वि० सं० १८९० (ई० स० १८३३) पोष सुदि-११ को रामनगर में हुआ था। माता-पिताने आपका नाम कृपाराम रखा था । दीक्षा के समय आपकी आयु १७-१८ वर्ष की थी । बाल-ब्रह्मचारी थे । आप का एक मित्र था उस का नाम जीवनमल था । जाति से वह अरोडा था और वह जैनेतर धर्मानुयायी था। दोनों की दीक्षा दिल्ली में वि० सं० १९०८ में हुई, जिसका वर्णन हम ऊपर कर आये हैं। दीक्षा का वरघोडा शुभ मुहूर्त में बड़ी सजधज के साथ बादशाही सोने की पालकी में दोनों दीक्षार्थियों को बिठला कर राजा-महाराजाओं के वेष में बडी शानोशौकत (ठाठ-माठ) के साथ निकाला) । हाथी, निशान, घुडसवार, ध्वजाओं, पताकाओं इत्यादि के साथ वरघोडे की निराली शान थी। अनेक बैंड-बाजों ने वरघोडे को चार चाँद लगा दिये थे। बादशाही सोने की पालकी में बैठे हुए दीक्षार्थी युवकद्वय ने भरा-पूरा कुटुम्ब परिवार आदि सर्व परिग्रह का त्याग करके भागवती जैनमुनि की दीक्षायें ग्रहण की। शुद्ध तत्त्व परीक्षक, प्रसिद्ध ऋषि बूटेराय । तजी कुमत पक्ष को, शुद्ध मार्ग दिल लाय ॥ अर्थात् शुद्ध तत्त्व के परीक्षक ऐसे प्रसिद्ध ऋषि बूटेरायजी कुमत पक्ष का त्याग तो कर ही चुके थे। परन्तु प्रभु श्रीमहावीर द्वारा प्ररूपित शुद्ध जैनमार्ग को पाने की मन में वर्षों से लगी प्यास को Shrenik/DIA-SHILCHANDRASURI / Hindi Book (07-10-2013)/(1st-11-10-2013) (2nd-22-10-2013) p6.5 [85]
SR No.009969
Book TitleSaddharma sanrakshaka Muni Buddhivijayji Buteraiji Maharaj ka Jivan Vruttant
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHiralal Duggad
PublisherBhadrankaroday Shikshan Trust
Publication Year2013
Total Pages232
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size1 MB
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