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________________ उत्कट विरोध का डटकर मुकाबिला इसलिये यहाँ से शीघ्र ही प्रस्थान कर जाना चाहिए । कारण यह है कि यहाँ स्थानकमार्गी हजारों स्त्री-पुरुष और सैंकडो साधुआर्यकाएं उपस्थित है और इस समय ये लोग हमारे विरोध में आपे से बाहर हो रहे हैं। हम दोनों इस समय सुरक्षित नहीं हैं। यहाँ रहने से हमें बहुत उपसर्ग तथा उपद्रव होंगे।" अतः आप पटियाला से आहार-पानी लेकर यह निश्चय कर आगे को चल दिये कि रास्ते में किसी सुरक्षित स्थान पर पहुँच कर आहार-पानी कर लेंगे और कल को अम्बाला पहुँच जावेंगे। जब उन लोगों को यह पता लगा कि हाथ आया शिकार बचकर निकल गया और हमारा दाव खाली गया तो वे लोग बडे सोच-विचार में पड गये। उन लोगों ने एकत्रित होकर यह निर्णय किया कि "इन दोनों को जैसे भी बने वैसे एक बार यहाँ अवश्य लाना चाहिये । यहाँ आ जाने पर इनको मुँहपत्ती बाँधने के लिये बाध्य करना चाहिये। यदि किसी भी प्रकार से न मानें तो घेरकर साधु का वेष उतार लेना चाहिये और नंगा करके निकाल देना चाहिये । हम लोग हजारों की संख्या में हैं, एक-एक घंसा भी मारेंगे, तो दोनों मरकर ढेर हो जावेंगे । वे हमारे सामने चूं न कर सकेंगे। वे या तो राहे-रास्त (सन्मार्ग) पर आ जावेंगे अथवा जान बचाकर नौ दो ग्यारह हो जावेंगे।" तब बीस-पच्चीस भाई आपके पीछे भागे और आप दोनों को रास्ते में आ घेरा । आपके पास आकर बडी नम्रता और विनयपूर्वक वन्दना की और बोले - "स्वामीजी ! आप इस क्षेत्र को छोडकर क्यों जा रहे हैं? आप वापिस पटियाला नगर पधारने की कृपा करें । यहाँ आपको ठहरने में किसी प्रकार की असुविधा न होगी। इन लोगों के Shrenik/DIA-SHILCHANDRASURI/ Hindi Book (07-10-2013)/(1st-11-10-2013) (2nd-22-10-2013) p6.5 [73]
SR No.009969
Book TitleSaddharma sanrakshaka Muni Buddhivijayji Buteraiji Maharaj ka Jivan Vruttant
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHiralal Duggad
PublisherBhadrankaroday Shikshan Trust
Publication Year2013
Total Pages232
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size1 MB
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