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________________ ७२ सद्धर्मसंरक्षक रखकर ही किया-कराया करें । यह मेरी आज्ञा है।" श्रीपूज्यजी की आज्ञा से उनके अनुयायी सब यतियोंने स्वीकार करके मुंहपत्ती को मुख पर बाँधने का त्याग कर दिया तब सारे पंजाब में सबके सामने यह बात प्रत्यक्ष हो गई कि सत्य वस्तु क्या है ? ऋषि बूटेरायजी स्यालकोट से विहार कर रामन वहां प्रेमचन्दजी तथा मुनि मूलचन्दजी दोनों चेले पहले ही पहुँच चूके थे। आप तीनों वहाँ इकट्ठे हो गये और चार दिन वहां स्थिरता करके गुजरांवाला की तरफ विहार कर गये। रास्ते में गोंदलाँवाला, किला-दीदारसिंह, पपनाखा में होते हुए गुजरांवाला पहुंचे । मूलचन्दजी को गुजरांवाला में लाला कर्मचन्दजी दूगड से जैनागमों आदि का अभ्यास करने के लिये छोडकर आपने प्रेमचन्दजी के साथ पटियाला की तरफ विहार कर दिया । विहार करते हुए मालेरकोटला में पहुँचे । यहाँ से आपका विचार दिल्ली जाने का हुआ । मालेरकोटले से विहार कर पटियाला पहुँचे । मुनि प्रेमचन्दजी भी आपके साथ थे। उत्कट विरोध का डटकर मुकाबिला __ पटियाला में ऋषि अमरसिंहजी के गुरुभाई ने साठ-सत्तर उपवास की तपस्या की थी और वह तपस्या में ही कालधर्म पा गया था। उसके शव-महोत्सव पर बहुत क्षेत्रों के हजारों की संख्या में स्थानकमार्गी श्रावक-श्राविकाएं तथा बहुत संख्या में साधुआर्यकाएं भी यहां एकत्रित हुए थे। उस समय आप भी अपने चेले प्रेमचन्दजी के साथ यहाँ आ पहुँचे । यहाँ सबके मुंह में आपकी ही चर्चा थी । आपके विरोध के लिये वे सब आपे से बाहर हो रहे थे। आपने सोचा कि "हमारा यहाँ ठहरना खतरे से खाली नहीं है, Shrenik/DIA-SHILCHANDRASURI / Hindi Book (07-10-2013) 1(1st-11-10-2013) (2nd-22-10-2013) p6.5 [72]
SR No.009969
Book TitleSaddharma sanrakshaka Muni Buddhivijayji Buteraiji Maharaj ka Jivan Vruttant
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHiralal Duggad
PublisherBhadrankaroday Shikshan Trust
Publication Year2013
Total Pages232
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size1 MB
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