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________________ ७४ सद्धर्मसंरक्षक आपसे अनेक प्रकार के प्रश्नोत्तर हुए, उन लोगों ने आपको सब प्रकार से तसल्ली कर दी, दम-दिलासा दिया, चापलूसी भी की और सब प्रकार से विश्वास दिलाकर आपको वापिस पटियाला ले गये। जब आपने पटियाला नगर में प्रवेश किया तो रास्ते में लोग आपकी तरफ घूर-घूर कर देख रहे थे, आपस में कानाफूसी कर रहे थे। ऐसा देखकर आपने सोचा कि यहाँ हमें उपसर्ग अवश्य होगा ! जो होगा देखा जायेगा-अब फंस तो गये ही हैं, जो होगा सामने आ जावेगा। घबराने का कोई काम नहीं है। आप दोनों एक स्थानक में जाकर ठहर गये, वहाँ आहार-पानी किया । आहार-पानी करके अभी आप बैठे ही थे, तो इतने में स्थानकवासी बीस-पच्चीस साधु और लगभग चार सौ गृहस्थों ने आप दोनों को आ घेरा । उनमें से एक साधु का नाम था 'गंगाराम' । वह अपने आपको महापंडित, विद्वान, शास्त्रों का जानकार मानता था । वह बोला - "बुटेरायजी ! यदि आप सूत्रों को मानते हो, तो आचार्य का कहना भी मानना चाहिये, सो उनका कहना क्यों नहीं मानते हो?" तब आपने कहा कि "मैं सूत्र भी मानता हूँ और आचार्य का कहना भी मानता हूँ। परन्तु गंगारामजी ! आप क्या कहना चाहते हो सो कहो?" तब वह बोले "यदि तुम आचार्य का कहना मानते हो तो अपने गुरु का वचन मानो । तुम्हारा गुरु नागरमल्ल था । वह मुख पर मुंहपत्ती बाँधता था और प्रतिमापूजन को नहीं मानता था । तुम उसके १. यह आत्माराम (विजयानन्दसूरि)जी की स्थानकमार्गी अवस्था का दादागुरु था। Shrenik/DIA-SHILCHANDRASURI / Hindi Book (07-10-2013)/(1st-11-10-2013) (2nd-22-10-2013) p6.5 [74]
SR No.009969
Book TitleSaddharma sanrakshaka Muni Buddhivijayji Buteraiji Maharaj ka Jivan Vruttant
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHiralal Duggad
PublisherBhadrankaroday Shikshan Trust
Publication Year2013
Total Pages232
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size1 MB
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