SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 78
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ सद्धर्मसंरक्षक रामचन्द्रं अच्छा विद्वान था तथा जिनप्रतिमा, जिनमंदिरों, जिनतीर्थों का श्रद्धावान भी था । वह पूर्वदेश में पावापुरी, चम्पापुरी, सम्मेतशिखर, राजगृही, गुणायाजी, क्षत्रीयकुंड, कुंडलपुर, बनारस आदि की तथा गुजरात-सौराष्ट्र में गिरनार, सिद्धाचल, आबू, अचलगढ, तारंगा, राणकपुर, केशरियानाथजी आदि तीर्थों की यात्राएं भी कर चुका था । जो चेला आपकी हस्तलिखित प्रतियाँ ले गया था वे प्रतियाँ यतिजी ने उससे लेकर आपके पास वापिस भेज दीं । श्रीपूज्य ( यतियों के आचार्य) रामचन्द्रजी स्यालकोट में आपसे कई बार मिलने आते रहते थे । यतिजी ने सारे सूत्र - सिद्धान्तों, ग्रंथो, आगमों का अवलोकन किया, पर किसी जगह भी मुँह पर मुँहपत्ती बाँधने का प्रमाण न मिला । वह आपके साथ जिनप्रतिमा तथा मुँहपत्ती के विषय में चर्चा भी करता रहता था । अन्त में आपसे वार्तालाप आदि करके उसने यह निर्णय किया कि मुँहपत्ती में डोरा डालकर चौबीस घंटे मुँह पर बाँध रखना जिनाज्ञा के अनुकूल नहीं है । यही कारण है कि ऋषि बूटेरायजी ने मुँहपत्ती का धागा तोड दिया है और वह अब मुँहपत्ती को हाथ में रखते हैं । इसलिये यही शास्त्रसम्मत है। पूज्य बूटेरायजी महाराज ऐसी प्ररूपणा भी करते हैं कि शास्त्रों में जिस सोमल सन्यासी का मुँह बाँधने का वर्णन आता है, वह अन्यलिंगी (जैनधर्मी नहीं) था। इससे यह बात भी स्पष्ट हो जाती है कि मुखबन्धामत अन्यलिंगियों (जैनेतरों के किसी संप्रदाय ७० १. इस श्रीपूज्य के उपाश्रय में जिनप्रतिमाएं भी बिराजमान थीं, जिनकी वह पूजा - सेवा भी करता था। इसके देहांत के बाद स्थानकमार्गियों ने प्रतिमाएं यहाँ से उत्थापित करके कहीं गायब कर दीं और यतिजी के उपाश्रय पर अपना अधिकार जमा लिया। Shrenik/D/A-SHILCHANDRASURI / Hindi Book (07-10-2013)/(1st-11-10-2013) (2nd-22-10-2013) p6.5 [70]
SR No.009969
Book TitleSaddharma sanrakshaka Muni Buddhivijayji Buteraiji Maharaj ka Jivan Vruttant
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHiralal Duggad
PublisherBhadrankaroday Shikshan Trust
Publication Year2013
Total Pages232
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size1 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy