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________________ उग्र विरोध का झंझावात पुनरोद्धार करो । अब मेरा भोगावली कर्म क्षीण हुआ मालूम होता है और मुझे पूर्ण वैराग्य का उदय हुआ है।" ___ आप स्वयं तो वहां नहीं जा सके किन्तु श्रीमूलचन्दजी को भेजा। श्रीमूलचन्दजी के पिंडदादनखा पहचने से पहले ही प्रेमचन्द ने जिनप्रतिमा की तथा श्रीसंघ की साक्षी से आपके नाम की (आपको गुरु धारण करके) दीक्षा ग्रहण कर ली । आपके स्वयं न जाने का कारण यह था कि आपको स्यालकोट जाना जरूरी था । वहा से आप को एक भाई बुलाने आया था। उस भाई का परिचय इस प्रकार है - नगर रावलपिंडी का एक भाई जिसका नाम मोहनलाल था। वह बीसा ओसवाल (भावडा) यक्ष (जख) गोत्रीय था । जब वह सात-आठ वर्ष का था तब उसकी आंखें दुखने आयी थीं और वह नेत्रहीन (अन्धा) हो गया था। घर में सब प्रकार से सुखी था । माता-पिता और सब परिवार सखी और सम्पन्न थे । भाई १. श्वेताम्बर जैन धर्मानुयायी ओसवाल एक बृहज्जाति है। कहा जाता है कि इस जाति के १४४४ गोत्र हैं। इनको जैनाचार्यों ने राजपूतों-क्षत्रियों आदि से प्रतिबोधित कर जैनधर्मानुयायी बनाया था। इस जाति में महाराणा प्रतापसिंह के महामन्त्री मेवाड देश संरक्षक कावडिया गोत्रीय भामाशाह; दीनोद्धारक जगडूशाह; खेमा देदरानी; ताराचन्द; दयालशाह; कर्मचन्द बच्छावत आदि अनेकानेक रणवीर, शूरवीर, राज्यसंचालक नेता, प्रधानमंत्री, राजकीय कोषाध्यक्ष, धर्मवीर, दानवीर, भारत देश की स्वतन्त्रता रक्षक आदि हो चुके हैं। मुसलमान बादशाहों ने इस जाति को शाह और हिन्दु महाराजाओं आदि ने सेठ, नगरसेठ, जगतसेठ आदि महा-पदवियों से विभूषित किया था। राजस्थान के राणाओं, महाराणाओं, राजाओं, महाराजाओं ने इनको महाजन के नाम से अलंकृत किया था। पंजाब में ये लोग "भावडा" के नाम से प्रसिद्ध थे। भावडा शब्द का अर्थ है जिनके भाव बडे उच्च हैं, उत्कृष्ट हैं। विक्रम से एक शताब्दी पहले इस देश में जैनाचार्य कालिकाचार्य (नरपिशाच स्त्रीलंपट Shrenik/DIA-SHILCHANDRASURI / Hindi Book (07-10-2013)/(1st-11-10-2013) (2nd-22-10-2013) p6.5 [55]
SR No.009969
Book TitleSaddharma sanrakshaka Muni Buddhivijayji Buteraiji Maharaj ka Jivan Vruttant
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHiralal Duggad
PublisherBhadrankaroday Shikshan Trust
Publication Year2013
Total Pages232
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size1 MB
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