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________________ ५४ सद्धर्मसंरक्षक रास्ते में एक स्थानकमार्गी साधु अठारह वर्ष का जिसका नाम धर्मचन्द था, वह विचक्षण और बुद्धिमान था । उसने आपके पास दीक्षा ली। उसे साथ में लेकर आप गजरांवाला में आये, उस समय प्रेमचन्द भी आपके पास आया और आपसे अपने पोथीपन्ने लेकर, आपको भावपूर्वक वन्दना करके गृहस्थ के वेष में ही वि० सं० १९०३ (ई० स० १८४६) का चौमासा पिंडदादनखां में जाकर किया । आपने और धर्मचन्दने रामनगर में चौमासा किया । मूलचन्दजी ने लाला कर्मचन्दजी शास्त्री के पास विद्याभ्यास करने के लिये गुजरांवाला में चौमासा किया। प्रेमचन्द को पिंडदादनखां के भाइयों ने प्रतिबोधित कर लिया और वह फिर दीक्षा लेने को तैयार हो गया । चौमासे उठे आप (बूटेरायजी)ने रामनगर से गुजरांवाले की तरफ विहार किया और मूलचन्दजी ने गुजरांवाला से रामनगर की तरफ विहार किया। रास्ते में जब गुरु और चेला मिले तो दोनों ने मुंहपत्ती का डोरा तोड दिया । इस दिन से आप मुखवस्त्रिका को हाथ में रखने लगे। रामनगर गुजरांवाला के जिले में है और गुजरांवाला से पश्चिम की ओर लगभग ३० मील की दूरी पर है तथा लाहौर से उत्तर-पश्चिम की ओर अकालगढ होते हुए लगभग ५० मील की दूरी पर है। रामनगर चन्द्रभागा (चनाब) नदी के किनारे पर आबाद है। आप मूलचन्दजी और धर्मचन्दजी (अपने दोनों शिष्यों) के साथ गुजरांवाला पहुँचे । तब प्रेमचन्द की पिंडदादनखा से आपके नाम एक चिट्ठी आयी। उसमें लिखा था कि "पूज्य गुरुदेव ! कृपा करके आप पिंडदादनखा पधारो और मुझ अनाथ को पुनः दीक्षा देकर मेरा Shrenik/DIA-SHILCHANDRASURI / Hindi Book (07-10-2013)/(1st-11-10-2013) (2nd-22-10-2013) p6.5 [54]
SR No.009969
Book TitleSaddharma sanrakshaka Muni Buddhivijayji Buteraiji Maharaj ka Jivan Vruttant
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHiralal Duggad
PublisherBhadrankaroday Shikshan Trust
Publication Year2013
Total Pages232
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size1 MB
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