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________________ २६ सद्धर्मसंरक्षक श्रद्धा जिनप्रतिमा पूजने के पक्ष की है तथा मुंहपत्ती बाँधने के विरुद्ध है। क्या यह बात सच है ?" आपने विचार किया कि "यदि मैं झूठ बोलता हूं तो मेरे महाव्रतों का खंडन होता है। महाव्रतों के खंडित हो जाने से मेरे पल्ले कुछ भी न रह पायेगा।" ऐसा सोचकर आपने कहा कि - "भाई ! यह बात सर्वथा सत्य है, परन्तु मैं इसकी प्ररूपणा इसलिये नहीं करता कि इस कलिकाल में प्रायः लोग दृष्टिरागी और कदाग्रही हैं । आत्मार्थी जीव तो कोई विरले ही होते हैं।" यह सुनकर लाला गंडामल ने कहा - "चौमासा उठे बाद ऋषि अमरसिंहजी यहाँ आपके साथ चर्चा करने आवेंगे।" ऐसा बोलकर भाई चला गया। आपका मन उधेड-बुन में पड़ गया। “अब क्या करना चाहिये ? अमरसिंहने तो मेरे पर धावा बोल दिया है। अब डरने अथवा मैदान छोड कर भागने से कोई लाभ न होगा । एकदिन तो सत्यमार्ग की प्ररूपणा शुरु करनी ही होगी। जो केवली भगवान ने अपने ज्ञान में देखा है वही होगा। इस समय सारे पंजाब में मेरा कोई भी सहयोगी अथवा अनुयायी नहीं है। मैं अकेला ही हूँ। यदि मेरी श्रीवीतराग प्रभु के मार्ग पर सच्ची श्रद्धा है, तो शासनदेव मेरे अवश्य सहायक होंगे । सत्य की सदा विजय होती है, इसमें किंचित् मात्र भी सन्देह नहीं है । डरने या भयभीत होने की कोई आवश्यकता नहीं है। अब मुझे निर्भय होकर दृढतापूर्वक सच्चे मार्ग की प्ररूपणा शुरू कर देनी चाहिये । जो होगा सो देखा जायेगा।" सत्य-प्ररूपणा की और आपने सोचा कि "जो भाई मेरे रागी हैं, श्रद्धालु हैं, मुझे उनके मन को टटोलना चाहिये, परखना चाहिये। कल सुबह जो भाई मेरे पास आवेंगे, उनसे मैं पूछंगा कि "भाइयो ! क्या आप लोगों को Shrenik/DIA-SHILCHANDRASURI / Hindi Book (07-10-2013)/(1st-11-10-2013)(2nd-22-10-2013) p6.5 [26]
SR No.009969
Book TitleSaddharma sanrakshaka Muni Buddhivijayji Buteraiji Maharaj ka Jivan Vruttant
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHiralal Duggad
PublisherBhadrankaroday Shikshan Trust
Publication Year2013
Total Pages232
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size1 MB
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