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________________ २५ सद्धर्मकी प्ररूपणा के लिये अवसरकी प्रतीक्षा जैसे जैसे आप शांत रहते रहे, वैसे वैसे ही ऋषि अमरसिंहजी ने आपके विरोध में बडे वेग से प्रचार शुरू कर दिया। वि० सं० १८९८ (ई० स० १८४१) का चौमासा आपने गुजरांवाला में किया । अभी तक आप चर्चा के विषय में मौन ही रहे । ऋषि अमरसिंहजी भी विहार करते हुए पसरूर मे चले आये । पसरूर गुजरांवाला से पूर्व दिशा की तरफ लगभग बीस मील की दूरी पर था। वहां गुजरांवाला के श्रावक लाला गंडामलजी अमरसिंहजी के पास आये। उनसे अमरसिंहजी ने पूछा कि "लालाजी तुम्हारे शहर में किसका चौमासा है ?" उन्होंने कहा कि "ऋषि बूटेरायजी का चौमासा है ।" फिर अमरसिंहजी ने पूछा कि "बूटेरायजी साधु कैसा है ?" लाला गंडामल ने कहा “अच्छा साधु है, क्रियापात्र है और आगम का जानकार विद्वान भी है। बहुत ही अच्छा साधु है।" अमरसिंहजी ने कहा कि "भाई ! क्या तुम्हें इस बात की खबर है कि इसकी श्रद्धा महाखोटी है। प्रतिमा को पूजने की श्रद्धा है और मुहपत्ती बाँधने की श्रद्धा नहीं है। वह कहता है कि जो मुखपत्ती बाँधते हैं वे पाखंडी हैं, निन्हव हैं, अन्यलिंगी हैं।" भाई ने कहा - "हमें तो इस बात की कोई खबर नहीं है। मैं भी प्रतिदिन कथा सुनने जाता हूँ, सामायिक प्रतिक्रमण भी करता हूँ। परन्तु उन्होंने तो कभी भी इस विषय की चर्चा नहीं की। न तो मैंने उनके मुख से कभी ऐसा सुना है और न ही किसी दूसरे ने सुना है। यदि कोई ऐसी बात होती तो छिपी थोडे ही रहती । गुजरांवाला में तो इस विषय की कोई चर्चा ही नहीं है। अब मैं जाकर उनसे पूडूंगा।" गंडामल ने गुजरांवाला में आकर आपसे पूछा कि "महाराजजी ! स्वामी अमरसिंहजी ने मुझे पूछा है कि आपकी Shrenik/DIA-SHILCHANDRASURI / Hindi Book (07-10-2013)/(1st-11-10-2013) (2nd-22-10-2013) p6.5 [25]
SR No.009969
Book TitleSaddharma sanrakshaka Muni Buddhivijayji Buteraiji Maharaj ka Jivan Vruttant
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHiralal Duggad
PublisherBhadrankaroday Shikshan Trust
Publication Year2013
Total Pages232
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size1 MB
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