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________________ सद्धर्मसंरक्षक सूत्र अच्छा है न ।" आपके अभी तक विपाकसूत्र पढा नहीं था । आपने जब उस विपाकसूत्र के पन्नों को उलट-पलट कर पढा तो अकस्मात गौतम स्वामी के प्रसंगवाले पन्ने पर दृष्टि पडी। उसे पढने से ज्ञात हुआ कि "जैन मुनि को मुख बाँध कर विचरणा योग्य नहीं है। क्योंकि गौतमस्वामी के मुख पर पट्टी बंधी हुई नहीं थी।" वह पाठ आपने अमरसिंहजी को भी दिखलाया। ऋषि अमरसिंहजी ने कहा कि यह पाठ स्वामी रामलालजी को दिखाकर निर्णय करना चाहिये । आपने स्वामी रामलालजी को विपाकसूत्र का पाठ बतलाया । वह पाठ यह है - तते णं से भगवं गोयमे मियादेविं पिट्ठओ समणुगच्छति । तते णं सा मियादेवी तं कद्रसगडियं अणकडमाणी अणुकड्डमाणी जेणेव भूमिघरे तेणेव उवागच्छति । उवागच्छित्ता चउप्पुडेणं वत्थेणं मुहं बंधमाणी भगवं गोतमं एवं वयासी - "तुब्भे वि णं भंते ! मुहपोत्तियाए मुहं बंधह । तते णं भगवं गोतमे मियादेवीए एवं वुत्ते समाणे मुहपोत्तियाए मुहं बंधेति । बंधइत्ता इत्यादि । (विपाकसूत्र-मृगापुत्र लोढा का अधिकार) अर्थात् तब भगवान गौतमस्वामी मृगादेवी के पीछे पीछे चल पडे । तत्पश्चात् वह मृगादेवी काष्ठ की गाडी को बैंचती-बँचती जहाँ भूमिघर (भोयरा) है वहाँ आती है। आकर चार पड के वस्त्र से अपना मुंह बाँधती है। फिर भगवन्त गौतमस्वामी से कहती है कि "हे गुरुदेव ! आप भी मुहपत्ती से मँह बाँधिये ।" मगादेवी के ऐसा कहने पर (आपने भी) मुँहपत्ती से मुख को बाँधा । बाँध कर इत्यादि। Shrenik/DIA-SHILCHANDRASURI / Hindi Book (07-10-2013)/(1st-11-10-2013) (2nd-22-10-2013) p6.5 [18]
SR No.009969
Book TitleSaddharma sanrakshaka Muni Buddhivijayji Buteraiji Maharaj ka Jivan Vruttant
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHiralal Duggad
PublisherBhadrankaroday Shikshan Trust
Publication Year2013
Total Pages232
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size1 MB
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