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________________ आगमानुकूल चारित्र पालने की धून ऋषि बूटेरायजी ने ऋषि रामलालजी को यह पाठ दिखला कर कहा कि "महाराज ! यदि गौतमस्वामी ने पहले अपने मुख पर मुँहपत्ती बाँधी होती तो फिर इस समय मैंहपत्ती बाँधने को क्यों कहा ? जैन साधु के १४ उपकरणों में एक ही मुंहपत्ती कही है। आप की श्रद्धा तथा आचरण के अनुसार तो उनके मुंह पर पहले से ही मुँहपत्ती बँधी होनी चाहिये थी?" ऋषि रामलालजी ने कहा - "मुख तो बाँधने का कुछ काम नहीं था। वह तो पहले ही बंधा हुआ था। जिस रोगी मृगा लोढे को गौतमस्वामी देखने गये थे, उसके शरीर से बहुत दुर्गंध आती थी, इस लिये नाक को बाँधा था। क्योंकि दुर्गंध का विषय नाक का है। मुख का नहीं है।" ऋषि बूटेरायजी ने ऋषि रामलालजी से कहा - स्वामीजी ! आप के कहने से तो यह सिद्ध हुआ कि चार ज्ञान के धारक श्रीगौतमस्वामी ने साक्षात् तीर्थंकर महावीर प्रभु के मुख से सुनी हुई वाणी की सूत्रपाठ की रचना में भूल की है। बाधा नाक था और कह गये मुख। यह प्रत्यक्ष-बाधित है। क्योंकि सुनी हुई वाणी को १. जैन श्रावक-श्राविकाएं जिनप्रतिमा की पूजा करते समय जब आठ पड वाले वस्त्र को मुख पर बांधते हैं, तब उससे नाक और मुख दोनों ढक जाते हैं। इस वस्त्र का नाम 'मुखकोश' है । अर्थात् मुख को ढाँकने का वस्त्र । इसी प्रकार यहाँ गौतमस्वामी ने भी मृगादेवी के कहने से दुर्गन्ध से बचने के लिये खुले मुँह और नाक को मुखपत्ती से बाँधा; यह स्पष्ट है। ___ पूजा करते समय श्रावक-श्राविकाओं के मुखकोश बाँधने का हेतु यह है कि पूजा करनेवाले का उच्छ्वास (सांस) एवं थूक श्रीजिनप्रतिमा पर न पडने पावे । मुखकोश बाँधने से कपडा मुख से सटता नहीं । नाक के उभार के कारण होठों से ऊँचा रहता है इसलिये होठों पर थूक भी नहीं जमता । Shrenik/DIA-SHILCHANDRASURI/ Hindi Book (07-10-2013)/(1st-11-10-2013) (2nd-22-10-2013) p6.5 [19]
SR No.009969
Book TitleSaddharma sanrakshaka Muni Buddhivijayji Buteraiji Maharaj ka Jivan Vruttant
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHiralal Duggad
PublisherBhadrankaroday Shikshan Trust
Publication Year2013
Total Pages232
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size1 MB
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