SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 208
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ २०० सद्धर्मसंरक्षक में एक अलग एकांत कमरे में ही जीवन की अन्तिम घडियां तक निवास किया । गणिश्री मूलचन्दजी महाराज भी आपकी वैयावच्च के लिये अहमदाबाद में ही रहे । आदर्श गुरु पूज्य बूटेरायजी तथा आदर्श गुरुभक्त शिष्य गणि मूलचन्दजी की जोडी प्रकृति ने प्रदान की थी। इन दोनों गुरु-शिष्यने वि० सं० १९३४ से १९३८ (ई० स० १८७७ से १८८१) तक पांच चौमासे अहमदाबाद में ही किये । वि०सं० १९३६ (गुजराती सं०१९३५) आसोज सुदि को आपके गुरु गणि मणिविजयजी का अहमदाबाद में स्वर्गवास हो गया। और मात्र १५ दिन की अल्प बीमारी के बाद वि० सं० १९३८ चैत्र वदि अमावस्या (गुजराती फागण वदि अमावस्या) को रात्री के समय समाधिपूर्वक आप का भी स्वर्गवास अहमदाबाद में हो गया । चैत्र सुदि १ को आपके नश्वर शरीर का साबरमती नदी के किनारे पर चन्दन की चिता में दाहसंस्कार कर दिया गया । स्वर्गवास के समय आप की आयु ७५ वर्ष की थी। गृहवास २५ वर्ष, दीक्षा पर्याय ५० वर्ष । जन्म वि० सं० १८६३, स्थानकमार्गी दीक्षा वि० सं० १८८८, संवेगी दीक्षा वि० सं० १९१२ में, तथा स्वर्गवास वि० सं० १९३८ अहमदाबाद में हुआ । इस समय श्रीवृद्धिचन्दजी महाराज वला (सौराष्ट्र) में थे और श्रीआत्मारामजी महाराज पंजाब में थे । सद्धर्मसंरक्षक सत्यवीर गुरुदेव के स्वर्गवास हो जाने के समाचार सुनकर आपके सारे शिष्य-परिवार को भारी आघात लगा । गुजरांवाला आदि क्षेत्रों को जिन्हें आपश्री ने अपने सदुपदेश से सद्धर्म की प्राप्ति कराई थी; आपश्री के स्वर्गवास के समाचारों को पाकर उन्हें भी भारी दुःख हुआ । वि० सं० १९३७ का सर्वप्रथम चौमासा गुजरांवाला में Shrenik/DIA-SHILCHANDRASURI / Hindi Book (07-10-2013) 1(1st-11-10-2013) (2nd-22-10-2013) p6.5 [200]
SR No.009969
Book TitleSaddharma sanrakshaka Muni Buddhivijayji Buteraiji Maharaj ka Jivan Vruttant
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHiralal Duggad
PublisherBhadrankaroday Shikshan Trust
Publication Year2013
Total Pages232
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size1 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy