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________________ सद्धर्मसंरक्षक श्रीबूटेरायजी महाराज से पहले २०१ आत्मारामजी ने किया । इससे पहले इन क्षेत्रों में पूज्य बूटेरायजी महाराज के पहले अथवा बाद में किसी भी संवेगी साधु ने विचरण नहीं किया था । सद्धर्मसंरक्षक श्रीबूटेरायजी महाराज से पहले सिन्धु- सोवीर, गांधार, भद्र, त्रिगर्त (कांगड़ा), पंजाब देश में प्रथम तीर्थंकर श्रीआदिनाथ से लेकर मुगल सम्राट शाहजहाँ बराबर अनेक तीर्थंकर और उनका श्रमण - श्रमणी संघ विचरण करते रहे । तेइसवें तीर्थंकर श्रीपार्श्वनाथ तथा चौबीसवें तीर्थंकर श्रीमहावीरस्वामी एवं उनके श्रमणसंघ भी विचरे । पूर्वधर आचार्यों, गीतार्थ मुनिराजों तथा पदवीधर मुनिराजों का आवागमन भी रहा । किन्तु विक्रम की अठारहवीं शताब्दी में संवेगी श्वेताम्बर साधुसाध्वीयों की अति अल्प संख्या होने से उनका विहार इन प्रदेशों में न हो सका । इधर लुंकामती साधु-साध्वीयों के एकदम प्रसार तथा प्रचार से यहाँ जैन धर्म का ह्रास होने लगा । प्राचीन काल से ही देश-विदेश के आक्रमणकारियों ने सर्व प्रथम पंजाब में आक्रमण किये, यहाँ के स्मारकों का विध्वंस तथा संस्कृति का विनाश किया। अत्याचारी यवनों ने तथा अन्य सम्प्रदायों ने एवं जैनधर्म के विरोधि अन्यलिंगियों ने भी जैन तीर्थों, मंदिरों, जिनप्रतिमाओं को नष्ट-भ्रष्ट कर नामशेष भी न रहने दिया और धन-सम्पति को लूटकर उन्हें मस्जिदों, बौद्ध-मन्दिरों तथा हिन्दु सम्प्रदाय के मन्दिरों के रूप में बदल दिया । मात्र इतना ही नहीं, जैनधर्म में ही जिनप्रतिमा - विरोधक सम्प्रदाय के अनुयायियों ने भी अनेक जैन मन्दिरों से श्रीतीर्थंकर Shrenik/D/A-SHILCHANDRASURI / Hindi Book (07-10-2013) / (1st-11-10-2013) (2nd-22-10-2013) p6.5 [201]
SR No.009969
Book TitleSaddharma sanrakshaka Muni Buddhivijayji Buteraiji Maharaj ka Jivan Vruttant
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHiralal Duggad
PublisherBhadrankaroday Shikshan Trust
Publication Year2013
Total Pages232
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size1 MB
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