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________________ १९८ सद्धर्मसंरक्षक तो मैं उनका शिष्य बनने को तैयार हूँ। अन्यथा द्रव्य, क्षेत्र, काल, भाव के अनुसार उत्सर्ग और अपवाद के आश्रित इस समय जैसा साधुधर्म पालना चाहिये वैसा मैं पालकर दिखलाता हूँ और यथाशक्ति नियमानुसार अब भी पाल रहा हूँ। यदि शांतिसागरजी के कथनानुसार साधुता का अभाव मान लिया जावे तो श्रीभगवतीसूत्र में भगवान के शासन को २१००० वर्ष तक चलते रहने का जो उल्लेख है उसकी उपपत्ति कैसे होगी? अभी तो २५०० वर्ष भी पूरे नहीं हो पाये । इसलिये ऐसा कहना भगवान के कथन का अपलाप करना है। अतः शास्त्रानुसार स्वयं आचरण करना और दूसरों को आचरण करने के लिये उपदेश देना तथा शास्त्रविरुद्ध आचरण से हटना – यही साधुजीवन का आदर्श है और होना भी यही चाहिये। ____ महाराजश्री आत्मारामजी के प्रवचन से जनता बहुत प्रभावित हुई । उसके हृदय से शांतिसागर का रहा-सहा प्रभाव भी जाता रहा । वह जिस पर्द की ओट में भोले जीवों को मायाजाल में फंसाता था, अन्त में वह दम्भपूर्ण साधुता का पर्दा आत्मारामजी के सत्यपूर्ण प्रवचनास्त्र के प्रभाव के प्रहार से कट गया और शांतिसागरजी अपने असली स्वरूप में नग्न रूप में जनता को दीख पडने लगे । इसके बाद शांतिसागर ने साधुवेष को छोडकर एक धनिक स्त्री की दी हुई हवेली में निवास करना प्रारम्भ कर दिया । गृहस्थ के वेष में आने के बाद उसके ढोंग का भंडाफोड हो गया । __ चतुर्मास समाप्त होने के बाद अहमदाबाद से आपने अपने शिष्य-परिवार के साथ विहार किया। श्रीसिद्धाचलजी, गिरनारजी की यात्रा कर वि० सं० १९३३ (ई० स० १८७६) का चतुर्मास आपने अपने गुरुभाई वृद्धिचन्दजी के साथ भावनगर में किया । Shrenik/DIA-SHILCHANDRASURI / Hindi Book (07-10-2013)/(1st-11-10-2013)(2nd-22-10-2013) p6.5 [198]
SR No.009969
Book TitleSaddharma sanrakshaka Muni Buddhivijayji Buteraiji Maharaj ka Jivan Vruttant
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHiralal Duggad
PublisherBhadrankaroday Shikshan Trust
Publication Year2013
Total Pages232
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size1 MB
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