SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 154
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ १४६ सद्धर्मसंरक्षक और बूटेरायजी आदि पंजाबी साधु ऐसा नहीं करते; इसलिये उन्हें चर्चा से परास्त करके नीचा दिखाना चाहिये । जिससे इनका बढ़ता हुआ प्रभाव समाप्त हो जायगा । उपर्युक्त तीनों उपाश्रयों के साधुओं ने एकमत होकर भोजक को भेजकर अहमदाबाद में विराजमान सब साधु-साध्वीयों तथा श्रावक-श्राविकाओं को नोतरा (बुलावा) भेजा कि कल रूपविजयजी के डेले में सब लोग इकट्ठे हो जावें । वहा बूटेरायजी से मुखपत्ती की चर्चा की जावेगी । चर्चा का विषय होगा कि "अपने दोनों कानों में छेद कराकर उन छेदों में मुँहपत्ती के एक-एक सिरे को डालकर मुँहपत्ती से मुँह और नाक को ढाँककर व्याख्यान करना चाहिये अथवा हाथ में लेकर मुख के आगे रखकर करना चाहिये?" यह चर्चा डेले में होगी। भोजक को कहा गया कि न तो बूटेरायजी के पास जाना और न ही नगरसेठ प्रेमाभाई हेमाभाई के पास जाना और न ही दलपतभाई को मालूम होने पावे । मूलचन्दजी को अवश्य कह आना । गणि रतनविजय की सूचनानुसार भोजक सब जगह कह आया परन्तु पूज्य बूटेरायजी, सेठ दलपतभाई तथा नगरशेठ प्रेमाभाई हेमाभाई को इसका कुछ भी पता न लगा। बाकी सारे अहमदाबाद को सूचना मिल गई। जब लोगों के मुख से सेठ दलपतभाई को पता लगा तब उसने नगरसेठ प्रेमाभाई के बेटे मयाभाई को बुलाया । दोनों सेठ प्रेमाभाई के पास गये और सेठ प्रेमाभाई से सब बात कही। नगरसेठ प्रेमाभाई ने कहा कि "डेले में सब को इकट्ठा होने दो। वहाँ न तो हम जावेंगे और न ही मूलचन्दजी जावेंगे । मूलचन्दजी Shrenik/DIA-SHILCHANDRASURI / Hindi Book (07-10-2013)/(1st-11-10-2013)(2nd-22-10-2013) p6.5 [146]
SR No.009969
Book TitleSaddharma sanrakshaka Muni Buddhivijayji Buteraiji Maharaj ka Jivan Vruttant
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHiralal Duggad
PublisherBhadrankaroday Shikshan Trust
Publication Year2013
Total Pages232
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size1 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy