SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 155
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ प्रत्याघात और मुंहपत्ती चर्चा १४७ के पास मेरी तरफ से आदमी को भेजकर कहला दिया जावे कि वह भी न जावें।" दलपतभाई तथा मयाभाई दोनों बोले- "यह बात नहीं होगी । यदि मूलचन्दजी नहीं जावेंगे तो वे लोग कहेंगे कि 'मूलचन्द झूठा है इसलिये नहीं आया । यदि सच्चा होता तो सामने आकर चर्चा करता ।' इसलिये इस विषय पर कुछ सूझ-बूझ से कदम उठाना चाहिये।" नगरसेठ प्रेमाभाई ने कहा- "भोजक को बुलाया जाय।" तब भोजक को बुलाकर नगरसेठ ने कहा कि "सारे अहमदाबाद में सब साधु-साध्वीयों तथा श्रावक-श्राविकाओं को नोतरा (बुलावा) दे आओ कि कल प्रात:काल सेठ की धर्मशाला में सब इकट्ठे हो जावें, वहाँ मुँहपत्ती की चर्चा होगी। रतनविजयजी को भी कह आना।" सेठ ने भोजक के साथ अपना आदमी भेजा। दोनों जाकर सब जगह कह आये । जब रतनविजय को यह समाचार मिला तो उनके हाथों के तोते उड़ गये। वह गहरी सोच विचार में पड़ गया कि "अब क्या किया जावे ? मैंने तो सोचा था कि मूलचन्द से पूछेंगे कि 'तुम व्याख्यान के समय मुखपत्ती को कानों में नहीं डालते, यह क्या कारण हैं ?' यदि वह यह कहेगा कि 'हम नहीं डालते, इसकी चर्चा की क्या आवश्यकता है ? जिसकी जैसी श्रद्धा हो वैसा करे ।' तब उनसे हम पूछेंगे कि गच्छ में सब साधु कानों में मुँहपत्ती डाल कर व्याख्यान करते हैं तो यह बात अच्छी है या बुरी ?' यदि वह कहेगा कि 'अच्छी है ।' तब उससे पूछेंगे - यदि अच्छी बात है तो तुमको भी करनी चाहिये। तुम भी तो तपागच्छ के हो ।' यदि मान लेगा तो अच्छी बात है । तब इस चर्चा के समाप्त होने पर फिर कोई दूसरी Shrenik/D/A-SHILCHANDRASURI / Hindi Book (07-10-2013) / (1st-11-10-2013) (2nd-22-10-2013) p6.5 [147]
SR No.009969
Book TitleSaddharma sanrakshaka Muni Buddhivijayji Buteraiji Maharaj ka Jivan Vruttant
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHiralal Duggad
PublisherBhadrankaroday Shikshan Trust
Publication Year2013
Total Pages232
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size1 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy