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________________ गुजरात में पुनः आगमन १३३ आप गुजरांवाला से विहार कर लाहौर, जालंधर, लुधियाना आदि अनेक नगरों और ग्रामों में विचरते हुए बीकानेर पधारे । वि० सं० १९२७ (ई० स० १८७०) का चौमासा यही पर किया । गुजरात में पुनः आगमन गुजरात में मुनि श्रीमूलचन्दजी और मुनिश्री वृद्धिचन्दजी आपके इन दोनों शिष्योंने जब यह सुना कि गुरुजी बीकानेर से गुजरात पधारने के लिये विहार कर चुके हैं, तब वि० सं० १९२७ (ई० स० १८७०) (गुजराती सं० १९२६) का चौमासा मुनिश्री वृद्धिचन्दजी का राधनपुर में था और मुनिश्री मूलचन्दजी का चौमासा अहमदाबाद में था । चौमासे उठे वृद्धिचन्दजी महाराज राधनपुर से विहार कर अहमदाबाद पधार गये । दोनों गुरुभाईयों ने गुरुजी के दर्शन, सन्मान, अगवानी (स्वागत) और मिलने के लिये चार साधुओं के साथ अहमदाबाद से विहार कर दिया । पाटन, पालनपुर आदि होकर पाली पहुंचे और वहां गुरुमहाराज के साथ जा मिले । गुरुमहाराज के बहुत वर्षों के बाद दर्शन होने से परम हर्ष, आनन्द और आह्लाद हुआ । कुछ दिन वहां स्थिरता कर आप सब ने गुजरात की तरफ विहार किया। रास्ते में आबूजी तीर्थ की यात्रा करके अपूर्व जिनप्रतिमाओं के दर्शन करके और अपूर्व शिल्पकला को देखकर आप मुनिराजों के हृदय गद्गद हो गये । अगणित (ई० स० १८६९) तक संवेगी वेष में पूज्य बूटेरायजी और स्थानकमार्गी वेषमें पूज्य आत्मारामजी (दोनों महापुरुषों) का परस्पर मिलने का अवसर आया हो ऐसा कोई प्रमाण नहीं मिला तो भी यह बात तो निःसंदेह है कि दोनों को एक-दूसरे की श्रद्धा समान होने का पता था । इस लिये ऐसा लगता है कि पूज्य बूटेरायजी का यह संकेत श्रीआत्मारामजी के लिये ही था । यद्यपि इस समय दोनों पंजाब में सद्धर्म का प्रचार कर रहे थे तथापि परस्पर साक्षात्कार नहीं हुआ था। Shrenik/DIA-SHILCHANDRASURI/ Hindi Book (07-10-2013)/(1st-11-10-2013) (2nd-22-10-2013) p6.5 [133]
SR No.009969
Book TitleSaddharma sanrakshaka Muni Buddhivijayji Buteraiji Maharaj ka Jivan Vruttant
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHiralal Duggad
PublisherBhadrankaroday Shikshan Trust
Publication Year2013
Total Pages232
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size1 MB
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