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________________ १३४ सद्धर्मसंरक्षक धनराशी खर्च करके इन जिनमंदिरों का निर्माण करानेवाले विमलशाह तथा वस्तुपाल-तेजपाल आदि के द्रव्यमूर्छा के त्याग का परिचय पाकर उनकी तीर्थंकर भगवन्तों के प्रति भक्ति और जिनशासन के प्रति दृढ-श्रद्धा के प्रत्यक्ष प्रमाण मिले । यहां से विहार कर रास्ते में अनेक तीर्थों की यात्रा करते हुए आप सब मुनिराज अहमदाबाद पधारे और वि० सं० १९२८ (गुजराती १९२७) (ई० स० १८७१) का चौमासा अहमदाबाद में किया । पूज्य गुरुदेव बूटेरायजी के वि० सं० १९१६ (ई० स० १८५६) को गुजरात से पंजाब के लिये विहार करजाने पर मुनिश्री मूलचन्दजी और मुनिश्री वृद्धिचन्दजी उनके साथ पंजाब न जाकर गुजरात और सौराष्ट्र में ही रहे। क्योंकि पंजाब के समान यहाँ पर भी यतियों-श्रीपूज्यों तथा लुंकामती साधुमार्गियों का बड़ा जोर था एवं स्थिरवासी संवेगी साधुओं में शिथिलता का बोलबाला भी था। इस लिये यहाँ पर भी बहुत उद्धार की आवश्यकता थी। यतियों और श्रीपूज्यों का जोर मुनिश्री मूलचन्दजी तथा मुनिश्री वृद्धिचन्दजी महाराज ने सर्वत्र सौराष्ट्र तथा सर्वत्र गुजरात में भावनगर, पालीताना, अहमदाबाद आदि नगरों में वि० सं० १९११ (ई० स० १८५४) से विचरने का श्रीगणेश किया। उस समय सारे सौराष्ट्र और गुजरात में यतियों, श्रीपूज्यों का जोर था । इसलिये संवेगी साधु-साध्वीयों का इस क्षेत्र में विचरना असंभव था । यहाँ का श्रावक-समुदाय यतियों और श्रीपूज्यों के शिकंजे में पूर्णरूप से जकडा हुआ था। इन लोगों को संवेगी साधु फूटी-आंखों नहीं सुहाते थे। ये लोग संवेगी साधुओं को व्याख्यान भी नहीं करने देते थे। यदि कोई करता तो ये लोग Shrenik/DIA-SHILCHANDRASURI / Hindi Book (07-10-2013) 1(1st-11-10-2013) (2nd-22-10-2013) p6.5 [134]
SR No.009969
Book TitleSaddharma sanrakshaka Muni Buddhivijayji Buteraiji Maharaj ka Jivan Vruttant
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHiralal Duggad
PublisherBhadrankaroday Shikshan Trust
Publication Year2013
Total Pages232
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size1 MB
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