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________________ १३२ सद्धर्मसंरक्षक चौमासे उठे आपने अपने शिष्यों के साथ गुजरात देश की तरफ विहार किया। आपके गुजरांवाला से रवाना होते समय यहां के लाला कर्मचन्दजी दूगड आदि प्रमुख श्रावकों ने गुरुजी से अभी पंजाब में ही विचरने की विनती की और प्रार्थना की कि- "आपश्री गुजरात चले जा रहे हैं। आपके चले जाने के बाद हम लोग क्या करेंगे? क्योंकि यहां सारे पंजाब में लंकामती छाये हए हैं। सर्वत्र इन्हीं का जोर है। संवेगी साधुओं के यहां न विचरने से आपने जो पंजाब में बहुत महा उपसर्ग, परिषह तथा कष्ट उठा कर हम लोगों का उद्धार किया है उसका उदाहरण खोजने से नहीं मिलता । कई-कई दिनों तक आहार-पानी न मिलने से आपने संतोषपूर्वक समय व्यतीत किया है। परन्तु अपने कार्य के वेग में कमी नहीं आने दी। सारे पंजाब में शुद्ध जैनधर्म का डंका बजाया है। अनेक नगरों और गांवों में जिस बीज को आपने वपन किया है अब तो उसको सिंचन करने की जरूरत है। आपके यहाँ से चले जाने के बाद यहाँ फिर इन का जोर बढेगा, इन के प्रचार से जिनमंदिरों को फिर ताले लग जावेंगे। गुरुदेव ने मुस्कराते हुए कहा- "भाइयो ! क्यों घबराते हो ? मेरे यहाँ से जाने के बाद कोई ऐसा पुण्यवान जीव अवश्य निकलेगा जो सारे पंजाब में सत्यधर्म का डंका बजावेगा। थोडे वर्ष और धैर्य रखो।" १. वि० सं० १९२१ से स्थानकमार्गी वेष में विचरते हुए भी आत्मारामजी महाराज ने शुद्ध सनातन मूर्तिपूजक श्वेताम्बर जैनधर्म का प्रचार पंजाब में शुरू कर दिया था । उस समय गुरुदेव बूटेरायजी पुन: पंजाब में पधार चुके थे । यहां जिनमंदिरों के निर्माण तथा प्रतिष्ठाओं का कार्य भी चालु था । यद्यपि वि० सं० १९२६ Shrenik/DIA-SHILCHANDRASURI / Hindi Book (07-10-2013)/(1st-11-10-2013)(2nd-22-10-2013) p6.5 [132]
SR No.009969
Book TitleSaddharma sanrakshaka Muni Buddhivijayji Buteraiji Maharaj ka Jivan Vruttant
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHiralal Duggad
PublisherBhadrankaroday Shikshan Trust
Publication Year2013
Total Pages232
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size1 MB
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