SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 121
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ११३ पंजाब से विनतीपत्र पूज्य बूटेरायजी महाराज तो परमत्यागी, शान्तस्वभावी, निरतिचार चारित्रपालक, सदा ध्यान-स्वाध्याय में ही समय बितानेवाले महायोगिराज थे । इसलिये मुनिसंघ की व्यवस्था सब मूलचन्दजी महाराज ही करते थे। पंजाब से विनतीपत्र इधर पूज्य बूटेरायजी के नाम विशेष संदेशवाहक श्रावकों के द्वारा पंजाब से गुजराँवाला, रामनगर, पपनाखा, जम्बू, पिंडदादनखाँ, किला-दीदारसिंह, किला-सोभासिंह आदि नगरों के श्रीसंघो से पंजाब पधारने के लिये विनतीपत्रों का तांता बंध गया। पहले तो पंजाबियों को पता ही नहीं मिल रहा था कि गुरुदेव गुजरात में कौनसे नगर में विराजमान हैं। पहले गुजराँवाला और रामनगर के श्रावकों ने विनतीपत्र लिखकर दो-चार श्रावकों के साथ भेजे । उनसे कहा गया कि गुरुदेव आजकल कहा विराजमान हैं इसका पता लगाकर उनके पास पहुंचे और विनतीपत्रों को आपके हाथ में देकर उन्हें पंजाब में साथ लेकर वापिस आवें । उस समय जाने-आने के लिये रेल आदि की सुविधाएँ नहीं थी। भारत में अंग्रेजों का राज्य हो जाने पर भी पंजाब में लौहपुरुष नरवीर महाराजा रणजीतसिंह का राज्य था । ई० स० १८४६ (वि० सं० १९०३) में पंजाब में अंग्रेजों का राज्य प्रारंभ हुआ । इसलिये पंजाब से दिल्ली आदि को जाने-आने के लिए घोडे, बैलगाडी आदि ही साधन थे । गुजरावाला, रामनगर आदि से विनतीपत्र लेकर रवाना होनेवाले श्रावक जैसे-तैसे दिल्ली पहुंचे। वहाँ आकर दिल्ली के भाइयों से पता लगा कि गुरुदेव अहमदाबाद में विराजमान हैं। श्रावक विनतीपत्र लेकर आपश्री के पास अहमदाबाद पहुंचे । Shrenik/DIA-SHILCHANDRASURI/ Hindi Book (07-10-2013)/(1st-11-10-2013) (2nd-22-10-2013) p6.5 [113]
SR No.009969
Book TitleSaddharma sanrakshaka Muni Buddhivijayji Buteraiji Maharaj ka Jivan Vruttant
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHiralal Duggad
PublisherBhadrankaroday Shikshan Trust
Publication Year2013
Total Pages232
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size1 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy