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________________ ११२ सद्धर्मसंरक्षक पूज्य बूटेरायजी ने मुनि मूलचन्दजी के साथ वि० सं० १९१६ (ई० स० १८५९) का चौमासा अहमदाबाद में किया और मुनिश्री वृद्धिचन्दजी ने अपने दादागुरु पंन्यास मणिविजयजी तथा पंन्यास दयाविमलजी के साथ भावनगर में किया । पूज्य बूटेरायजी ने नगरसेठ हेमाभाई को प्रेरणा करके पंजाब में बन रहे नवीन जिनमंदिरों के लिए जिनप्रतिमाएं भेजवाईं । यहाँ पर आप दोनों गुरु-शिष्य ने आगमों पर पंचांगी का विशेष रूप से चिंतन, मनन, पठन, पाठन, स्वाध्याय किया। पूज्य बूटेरायजी एक अलग कोठरी में अधिकतर समय ध्यान में ही बिताते थे। आप दिन में दोपहर के बाद मात्र एक बार ही आहार करते थे। आपके लिए आहार प्रायः मूलचन्दजी लाया करते थे। कभी-कभी आप स्वयं भी अपने लिये आहार ले आते थे। आप गोचरी जाते थे तो दोपहर के बारह बजे के बाद, जब प्रायः सब गृहस्थ लोग अपने अपने घरों में खा-पी चुकते थे । अन्य साधु मुनिश्री मूलचन्दजी की निश्रा में पास के कमरों में निवास करते थे और आप के सामीप्य में प्रायः सब समय पठन-पाठन में व्यतीत करते थे। पूज्य मूलचन्दजी महाराज अपने सब समुदाय पर नियंत्रण रखते थे। उनके लिये सब प्रकार की व्यवस्था आपके द्वारा की जाती थी। आप में अपूर्व कार्यशक्ति थी, सर्वतोमुखी प्रतिभा थी, अजोड व्यवस्थाशक्ति थी, शासन चलाने का महान सामर्थ्य था । आपके मन में शुरू से ही चारित्रसंपन्न तथा ज्ञानवान, वैराग्यवान साधुओं की संख्या बढाने में लगन थी। इसलिये धीरे-धीरे मुनियों की संख्या में वृद्धि होने लगी। Shrenik/DIA-SHILCHANDRASURI / Hindi Book (07-10-2013)/(1st-11-10-2013) (2nd-22-10-2013) p6.5 [112]
SR No.009969
Book TitleSaddharma sanrakshaka Muni Buddhivijayji Buteraiji Maharaj ka Jivan Vruttant
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHiralal Duggad
PublisherBhadrankaroday Shikshan Trust
Publication Year2013
Total Pages232
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size1 MB
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