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________________ ११४ सद्धर्मसंरक्षक विनतीपत्र पढते ही और संदेशवाहक भक्तजनों के हृदयव्यथा से व्यथित नेत्रों से बहती हुए धारावाही अश्रुधाराओं ने आपको पंजाब की ओर रवाना होने के लिए विवश कर दिया। पंजाब की और विहार वि० सं० १९१६ (ई० स० १८५६) के चौमासे उठे आपने मानकविजय और पुण्यविजय दो साधुओं को अपने साथ लेकर पंजाब की ओर विहार कर दिया । इस समय मुनिश्री मूलचन्दजी अहमदाबाद में और मुनिश्री वृद्धिचन्दजी भावनगर में थे । आपश्री के पंजाब की ओर विहार कर देने पर पंजाब से आए हुए संदेशवाहक श्रावक भाई पंजाब की तरफ रवाना हो गए और वहाँ पहुंचकर आपश्री पंजाब के लिए रवाना हो चुके हैं ये समाचार दोनों श्रीसंघो को कह सुनाए । समाचार पाकर पंजाब के भगतों के हर्ष का पारावार न रहा। ___ आपके अहमदाबाद से विहार कर जाने के बाद मुनिश्री वृद्धिचन्दजी भावनगर से पालीताना की यात्रा करके आपको और गुरुभाइयों को मिलने के लिए अहमदाबाद पधारे । यहाँ आने पर आपको मालूम हुआ कि गुरुदेव तो पंजाब की तरफ विहार कर गए हैं। यह जानकर गुरुदेव के दर्शनों से वंचित रहने का आपको अपार दुःख हुआ। गुजरात से चलकर वि० सं० १९१७ (ई० स० १८६०) का चौमासा आपने पाली नगर (राजस्थान) में किया । और वि० सं० १९१८ (ई० स० १८६१) का चौमासा दिल्ली में किया । दिल्ली में गुजरांवाला से लाला कर्मचन्दजी दूगड शास्त्री आदि चार मुख्य श्रावक एवं रामनगर से बागाशाह आदि चार श्रावक Shrenik/DIA-SHILCHANDRASURI / Hindi Book (07-10-2013) 1(1st-11-10-2013) (2nd-22-10-2013) p6.5 [114]
SR No.009969
Book TitleSaddharma sanrakshaka Muni Buddhivijayji Buteraiji Maharaj ka Jivan Vruttant
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHiralal Duggad
PublisherBhadrankaroday Shikshan Trust
Publication Year2013
Total Pages232
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size1 MB
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