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________________ १११ आदर्श गुरुभक्ति मुनिश्री वृद्धिचन्दजी महाराज यह दूध पी तो गए। इससे आप को संग्रहणी का रोग हो गया । यह व्याधि आपको जीवन के अन्त क्षणों तक रही। बहुत औषधोपचार करने पर भी रोगमुक्त न हुए। इस रोग के कारण आप धीरे धीरे इतने अशक्त हो गए कि विहार करने की भी क्षमता न रही। इसी कारण से आपको अंतिम ११ चौमासे भावनगर में ही करने पड़े और वहीं इस नश्वर देह का त्याग हुआ धन्य है ऐसे गुरुभक्त शिष्य तथा गुरुभाई भक्त को जिसने अपने प्राणों की बाजी लगा दी। परन्तु गुरु और गुरुभाई दोनों को आंच न आने दी। वि० सं० १९९५ (ई० स० १८५८) का चौमासा बूटेरायणी महाराजने भावनगर में, मूलचन्दजीने सिहोर में और वृद्धिचन्दजी महाराजने गोधा में किया। पंचांगी सहित आगमों का अभ्यास इस चौमासे में पूज्य बूटेरायजी महाराज ने भावनगर में बत्तीस सूत्रों के अतिरिक्त जो बाकी जिनागम थे उनका अभ्यास किया। इस प्रकार ४५ आगमों का पंचांगी सहित अभ्यास पूरा कर लिया। अब आप सदा आत्मचिंतन, ध्यान तथा आगमों के स्वाध्याय में ही अधिक समय व्यतीत करने लगे । अन्य किसी भी प्रकार की खटपट में नहीं पड़ते थे। चौमासे उठे पूज्य बूटेरायजी महाराज फिर श्रीसिद्धाचलजी की यात्रा के लिए पालीताना में पधारे। यात्रा करके आप मूलचन्दजी को साथ लेकर अहमदाबाद पधारे वृद्धिचन्दजी भावनगर पधारे। Shrenik/D/A-SHILCHANDRASURI / Hindi Book (07-10-2013) / (1st-11-10-2013) (2nd-22-10-2013) p6.5 [111]
SR No.009969
Book TitleSaddharma sanrakshaka Muni Buddhivijayji Buteraiji Maharaj ka Jivan Vruttant
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHiralal Duggad
PublisherBhadrankaroday Shikshan Trust
Publication Year2013
Total Pages232
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size1 MB
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