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________________ ११० सद्धर्मसंरक्षक महाराज भी श्रीसिद्धाचलजी के दर्शन करने तथा गुरुदेव और गुरुभाई से मिलने के लिए भावनगर से विहार कर पालीताना आ पहुंचे। तीनों का यहां मिलाप हुआ। से यहाँ पर एक विशेष घटना घटी मुनि श्रीमूलचन्दजी एक दिन गोचरी में दूध ले आए। उस दूध में श्राविका ने भूल चीनी के बदले नमक डाल दिया था। इसका पता देने और लेनेवाले दोनों में से किसी को भी नहीं था। जब पूज्य गुरुदेव बूटेरायजी ने दूध पीने के लिए पात्र को मुँह से लगाया और पहला घूंट पिया तो एकाएक बोले- "मूला! मेरी जीभ खराब हो गई है, यह दूध कडवा लगता है !" — यह सुनकर मूलचन्दजी बोले कि "गुरुदेव ! लाइये मैं देखूं।" पात्र को अपने हाथ में लेकर जब मुनिश्री मूलचन्दजी ने दूध को चखा तब सहसा बोले कि “साहेब ! इसमें कुछ भूल हो गई लगती है । श्राविका ने भूल से चीनी के बदले दूध में नमक डाल दिया है।" यह कहकर मूलचन्दजी स्वयं उस दूध को पीने के लिए तैयार हो गए। यह देखकर मुनिश्री वृद्धिचन्दजी से न रहा गया। उन्होंने तुरन्त कहा – “भाईसाहब ! लाइए देखूं तो क्या बात है ?" ऐसा कहकर दूध के पात्र को मूलचन्दजी से लेकर स्वयं दूध को चखा। देखा कि दूध में बहुत मात्रा में नमक डाला हुआ है, इसका स्वाद क कडवा हो गया है। पूज्य मूलचन्दजी से कहा "भाईसाहब ! यह दूध न तो गुरुजी के पीने योग्य है और न ही आपके पीने योग्य है, परठने से जीवों की विराधना अवश्य सम्भव है। इसलिए मैं पी जाता हूँ।" पात्र को उठाकर वृद्धिचन्दजी झटपट सारा दूध स्वयं पी गए । Shrenik/D/A-SHILCHANDRASURI / Hindi Book (07-10-2013) / (1st-11-10-2013) (2nd-22-10-2013) p6.5 [110]
SR No.009969
Book TitleSaddharma sanrakshaka Muni Buddhivijayji Buteraiji Maharaj ka Jivan Vruttant
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHiralal Duggad
PublisherBhadrankaroday Shikshan Trust
Publication Year2013
Total Pages232
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size1 MB
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