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________________ को पकड़े है, वह अपने को कैसे पा सकेगा? जब तक बाहर दृष्टि है, भीतर कैसे पहुंचेंगे? महावीर भी बाहर हैं, तीर्थंकर भी बाहर हैं, भगवान भी बाहर हैं। सबसे अशरण हो जाओ। महावीर का निर्वाण हो गया। जब महावीर की मृत्यु हुई, मोक्ष हुआ, तो गौतम गांव के बाहर गया था। रास्ते में लौटते राहगीरों ने कहा, महावीर ने देह छोड़ दी। गौतम रोने लगा। उसने कहा, मेरा अब क्या होगा? उन भगवान के रहते मैं सत्य को न जान सका, अब मेरा क्या होगा? अब तो मैं निराधार हो गया, अब तो मेरा दीप बुझ गया, अब तो मेरा मार्गदर्शक खो गया। अब मेरा कौन है? उन राहगीरों ने कहा, उन परम कृपालु भगवान ने अंतिम समय में तुम्हारे लिए एक सूत्रवचन छोड़ा है। गौतम ने कहा, क्या कहा है, मुझे शीघ्र कहो! और वह वचन अदभुत था। और उस वचन को हृदय में रख लें। सारे धर्मों के लोग उस वचन को हृदय में रख लें। बहुमूल्य है वचन। महावीर ने कहा, गौतम, तू सारी नदी को पार कर गया, अब किनारे को पकड़ कर क्यों रुक गया है। किनारे को भी छोड दे। __महावीर ने कहा, गौतम, तू सारी नदी पार कर गया, अब किनारे को पकड़ कर क्यों रुक गया है! किनारा भी छोड़ दे। और इस वचन को सुनते ही गौतम को ज्ञान उत्पन्न हो गया। एक ही संध्या बाद गौतम को केवल-ज्ञान उत्पन्न हो गया। उसने सत्य को जाना। जिसे सत्य को जानना है उसे संपत्ति ही नहीं छोड़नी पड़ती, जिसे सत्य को जानना है उसे चित्त से सारा कचरा छोड़ देना होता है और शून्य हो जाना होता है। जो शून्य होगा, वह पूर्ण को पाने का हकदार हो जाता है। और जो सब छोड़ देगा, वह सब पाने का अधिकारी बन जाता है। यही संन्यास है। ___संन्यास का अर्थ बाहर कपड़े-लत्ते छोड़ देने से नहीं है। संन्यास का अर्थ, भीतर जो कपड़े-लत्ते और फर्नीचर इकट्ठा हो गया है दिमाग में, उसको छोड़ देने से है। भीतर जो कचराकबाड़ इकट्ठा हो गया है, उसे छोड़ देने से है। और स्मरण रखें, उस कचरे में कई चीजें सोने की भी हैं, लोहे की भी हैं। लोहा छोड़ देने में उतनी दिक्कत नहीं होती। असली सवाल सोने को छोड़ देने का है। भीतर चित्त से शुभ और अशुभ के जो विचार छोड़ देगा, वह शुद्ध आत्मा को उपलब्ध होता है। अशुभ के विचार छोड़ना आसान है, शुभ के विचार छोड़ना कठिन है। लेकिन जो शुभ-अशुभ दोनों को छोड़ देता है, जो पाप-पुण्य दोनों चिंतनाओं को छोड़ देता है, जो धर्मअधर्म दोनों चिंतनाओं को छोड़ कर शून्य में प्रविष्ट होता है, वह सत्य को उपलब्ध हो जाता है। तब वही केवल शेष रह जाता है. जो है। वही केवल शेष रह जाता है, जिसकी सत्ता है। वही केवल शेष रह जाता है, जो सत्य है। उसे जान कर अपूर्व आनंद को, अपूर्व मुक्ति को व्यक्ति अनुभव करता है। उसके पहले हम मुर्दे हैं। उसके पहले कोई अपने को जीवित न समझे। उस सत्य को जानने के पहले हम मुर्दे हैं। ___ इसलिए मैं कहता हूं कि मुर्दे हैं। मैं अपना स्मरण करता हूं। मैं जिस दिन पैदा हुआ, उस दिन से मैं जान रहा हूं कि मैं रोज मर रहा हूं, मैं रोज मरता जा रहा हूं। एक दिन यह मरण की प्रक्रिया पूरी हो जाएगी। इसको मैं जीवन कैसे कहूं, यह तो ग्रेजुअल डेथ है! यह तो क्रमिक मृत्यु है! यह तो आहिस्ता-आहिस्ता मरते जाना है! इसे मैं जीवन कैसे कहूं? जीवन क्या कभी मर 85
SR No.009968
Book TitleMahavir ya Mahavinash
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRajnish Foundation
Publication Year2011
Total Pages228
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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